शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में भ्रष्टाचार का घुन लग गया है और लूट-खसोट के नए-नए तरीके ईजाद किए जाते हैं.
शिक्षा घोटाला कोई नई चीज नहीं है. इसके कई आयाम हैं तथा यह विभिन्न प्रदेशों में होता आया है. शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में भ्रष्टाचार का घुन लग गया है और लूट-खसोट के नए-नए तरीके ईजाद किए जाते हैं. आम जनता ही नहीं, सरकार व प्रशासन भी इस धांधली से वाकिफ हैं लेकिन वही हालत है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? कितने ही लोग इसे सिस्टम का दोष मानकर बर्दाश्त कर लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. शिक्षा के नाम पर सरकारी खजाने से धन कैसे लूटा जाए, इसी खोटी नीयत को लेकर अनेक मगरमच्छ बेखौफ घूम रहे हैं. शिक्षा महर्षियों की बाढ़ सी आ गई है लेकिन इनमें से कितने स्तरीय शिक्षा प्रदान करने का उच्च और सार्थक उद्देश्य रखकर ईमानदारी से काम करते हैं? दरअसल शिक्षा क्षेत्र ऐसे मतलबपरस्त लोगों के लिए मिशन नहीं, बल्कि धंधा बन गया है. येन केन प्रकारेण मोटी कमाई करने का उद्देश्य रखकर वे अपनी कारगुजारी को अंजाम देते रहते हैं.
बाम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने बीड जिले के बृजमोहन मिश्रा ने जनहित याचिका दायर की है, जिसमें सनसनीखेज दावा किया गया है कि राज्य में 24 लाख फर्जी छात्र हैं जिनका कोई अस्तित्व ही नहीं है. राज्य के निजी स्कूलों में फर्जी पटसंख्या (एनरोलमेंट) दिखाकर सरकार को चूना लगाया जा रहा है. ज्यादा छात्र दिखाकर अधिक अनुदान (ग्रांट) लिया जाता है. छात्रों की स्कालरशिप या फ्रीशिप के नाम पर भी सरकार से फंड लिया जाता होगा. इस मामले में अदालत ने आधार कार्ड से जुड़े छात्रों की जानकारी जमा करने के निर्देश दिए हैं.
जब सब कुछ डिजिटल है तो धांधली कैसे चलती है
यदि आधार कार्ड से पटसंख्या जुड़ी हो तो बोगस या फर्जी छात्रों को दिखाया ही नहीं जा सकता और धांधली तुरंत पकड़ में आ सकती है. परंतु ऐसा न होकर निजी स्कूलों, प्रधानाध्यापकों, संस्था संचालकों और भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से ऐसे बहुत बड़े घोटाले को अंजाम दिया गया है. यदि सरकार और प्रशासन पहले ही चुस्ती दिखाते तो फर्जी छात्र घोटाला हो ही नहीं सकता था. शिक्षा अधिकारी निजी स्कूलों का समय-समय पर प्रत्यक्ष औचक निरीक्षण करें तो पता चल सकता है कि छात्रों की वास्तविक तादाद और रजिस्टर में दर्ज संख्या में कितना जमीन-आसमान का अंतर है.
यूपी में क्या हुआ था
उत्तरप्रदेश में योगी सरकार आने के बाद शिक्षा माफिया की चालबाजी पर अंकुश लग गया. डिजिटल तरीके से जांच और आधार नंबर भी जोड़े जाने की अनिवार्यता से सारा भंडाफोड़ हो गया. वहां भी ऐसे तमाम सरकारी व प्राइवेट स्कूल थे जो वर्षों से फर्जी छात्रों के नाम पर सरकारी ग्रांट व स्कालरशिप की रकम हड़पते आए थे. इसके अलावा कुछ शिक्षक एक साथ आधा दर्जन स्कूलों में एक साथ नौकरी कर वहां से वेतन उठा रहे थे. सारा बोगस कारोबार था. जब डिजिटाइजेशन हुआ तो पता चला कि न इतने अधिक छात्र हैं, न इतने शिक्षक. अनुदान की बंदर बांट हो रही है. शिक्षा माफिया व नकल माफिया की जड़ें भी काफी गहरी थीं.
भ्रष्टाचार में ऊपर से नीचे तक मिलीभगत रहती है. मिड डे मील के लिए दिए जाने वाले राशन व राशि में भी इसी प्रकार से धांधली की जाती है. प्राइवेट अनुदानित स्कूलों में शिक्षकों को मोटी रकम लेकर नौकरी दी जाती है और वेतन का चेक तभी दिया जाता है जब वे तय की गई नकद रकम बराबर स्कूल प्रबंधक को दें. ऐसे भ्रष्टाचारी माहौल में बच्चों को कहां से नैतिकता व उच्च आदर्शों की शिक्षा मिल पाएगी?