रीति-रिवाज का पालन जरूरी, हिंदू विवाह में 7 फेरे अनिवार्य

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तामझाम के साथ शादी करनेवालों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सतर्क किया है कि विवाह सिर्फ गीत-नृत्य और शराब पीने का आयोजन नहीं है। यह दहेज और उपहारों की मांग करने या आदान-प्रदान करने का अवसर भी नहीं है। हिंदू विवाह (Hindu marriage) तभी वैध है जब सप्तपदी (अग्नि के 7 फेरे) लिए जाए। यह कानून पहले से मौजूद है जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) के सेक्शन 8 के तहत शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी है लेकिन सिर्फ रजिस्ट्रेशन से शादी वैध नहीं हो जाती। 

सेक्शन 7 के प्रावधानों के अनुरूप रीति-रिवाजों के साथ शादी जरूरी है। हिंदू विवाह एक संस्कार है यह वाइनिंग-डाइनिंग की आयोजन मात्र नहीं है। यदि अपेक्षित रस्म और रिवाज पूरे नहीं किए गए तो हिंदू विवाह अमान्य है। अदालत ने विवाह संस्था को महत्वहीन न बनाने की हिदायत दी। सुप्रीम कोर्ट ने यह चेतावनी देकर उन लोगों को जागृत किया जो मैरिज को संस्कार की बजाय इवेंट के रूप में देखते हैं। 

प्रिवेडिंग डेस्टिेशन शूटिंग, भव्य रिसेप्शन, हनीमून प्लानिंग अपनी जगह हैं लेकिन हिंदू विवाह में अग्नि को साक्षी मानकर 7 फेरे अनिवार्य हैं। यहां ‘बिन फेरे हम तेरे’ को कानूनी मान्यता नहीं है। 7 फेरे नहीं लिए और पंजीकरण करा लिया तो इससे शादी वैध नहीं हो जाती। विवाह को औपचारिकता व व्यावसायिक लेन-देन की तरह लेनेवालों को सुप्रीम कोर्ट की ताकीद होश में ला देगी।