इतने वर्षों बाद सरकार को सूझा सस्ती मेडिकल शिक्षा देनी होगी

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    रूस के यूक्रेन पर हमले से उत्पन्न भयंकर स्थिति के चलते यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय मेडिकल छात्रों को जैसे-तैसे जान बचाकर स्वदेश लौटना अपरिहार्य हो गया है. स्पष्ट है कि यूक्रेन और रूस में मेडिकल शिक्षा की फीस काफी कम होने की वजह से दुनिया भर के छात्र वहां पढ़ाई करने के लिए जाते हैं. वहां एडमिशन भी आसानी से हो जाता है तथा वहां की डिग्री को यूरोपीय संघ और डब्यूएचओ की मान्यता है. अब इतने वर्षों बाद सरकार के ध्यान में यह बात आई कि क्या भारत में भी कम खर्च में मेडिकल शिक्षा दी जा सकती है?

    इसे देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने एक स्टडी कमेटी का गठन किया है. राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री अमित देशमुख ने कहा कि यह समिति यूक्रेन व रूस में मेडिकल ट्यूशन फीस का अध्ययन करेगी और शीघ्र ही अपनी रिपोर्ट पेश करेगी. कमेटी इस बात का अध्ययन करेगी कि क्या रूस व यूक्रेन की तरह भारत के राज्यों में कम फीस लेकर मेडिकल शिक्षा दी जा सकती है? देशमुख ने यह भी आश्वासन दिया कि यूक्रेन से लौटने वाले छात्रों का कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.

    आबादी के अनुपात में डॉक्टर काफी कम

    विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश के मुताबिक 1000 लोगों पर कम से कम 1 डाक्टर होना चाहिए लेकिन भारत में 1,456 लोगों की आबादी पर 1 डाक्टर हैं. एलोपैथी डाक्टरों की देश में भारी कमी है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 80 प्रतिशत एलोपैथी डॉक्टरों के साथ 5,65,000 आयुष प्रैक्टिशनर्स को मिलाकर दावा किया कि प्रति 836 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. आयुष में आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथिक आदि चिकित्सकों को शामिल किया जाता है.

    आसमान छूती फीस

    भारत के शासकीय मेडिकल कालेजों में सीमित सीटें हैं. निजी मेडिकल कालेजों की फीस आसमान छू रही है. ऐसी हालत में लोग अपने बच्चों को रूस, चीन या यूक्रेन भेजते हैं जहां पढ़ाई, रहना, खाना सब काफी कम लागत में हो जाता है. यूक्रेन में 6 वर्ष की मेडिकल पढ़ाई 25 से 30 लाख रुपए में पूरी हो जाती है. वहां मेडिकल शिक्षा इसलिए भी सस्ती पड़ती है क्योंकि यूक्रेन की मुद्रा रिबनिया सिर्फ 2.61 रु. के बराबर है. यह डॉलर, पाउंड या रूबल की तुलना में काफी सस्ती है.   करीब 18,000 भारतीय छात्र यूक्रेन में हैं. अमेरिका, कनाडा व इंग्लैंड की तुलना में रूस, यूक्रेन या चीन में डॉक्टरी की पढ़ाई कम खर्च में हो जाती है. चीन में भारत की तुलना में साढ़े तीन गुना मेडिकल सीट उपलब्ध हैं.

    भारत की स्थिति

    भारत में कुल 604 मेडिकल कालेज हैं जिनमें 90,000 सीटें उपलब्ध हैं. इनमें 60 प्रतिशत सीट एमबीबीएस और 40 प्रतिशत डेंटल शिक्षा के लिए होती हैं. चीन के मेडिकल कॉलेजों में 2,86,000 सीटें उपलब्ध हैं. भारत में 85 प्रतिशत सीटें संबंधित राज्य के छात्रों के लिए तथा 15 प्रतिशत सीटें राष्ट्रीय कोटे से भरी जाती हैं. 52.5 प्र.श. सीट एससी, एसटी, ओबीसी व दिव्यांग के लिए तथा 10 प्रश आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित हैं. कुल 62.5 प्रतिशत आरक्षित सीटें होने से खुले वर्ग के छात्रों को मेडिकल प्रवेश में बहुत दिक्कत जाती है.

    मंत्री की जले पर नमक छिड़कने वाली टिप्पणी

    केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि विदेश जाने वाले 90 प्रतिशत मेडिकल छात्र वो होते हैं जो नीट क्लीयर नहीं कर पाते. तथ्य यह है कि भारत के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा काफी महंगी है और सीटें बेहद कम हैं. 60 प्रतिशत छात्र चीन, रूस और यूक्रेन जाते हैं. इन देशों में एमबीबीएस के पूरे 6 वर्ष के कोर्स की फीस करीब 35 लाख रुपए आती है जिसमें पढ़ाई, रहने-खाने, कोचिंग तथा भारत लौटने पर स्क्रीनिंग टेस्ट क्लीयर करने का खर्च शामिल है.

    इसके विपरीत भारत के प्राइवेट मेडिकल कालेजों में केवल ट्यूशन फीस 45 से 55 लाख रुपए या इससे भी ज्यादा हो जाती है. प्रति वर्ष 7 से 8 लाख छात्र नीट क्वालीफाई करते हैं लेकिन जब मेडिकल सीट ही 90,000 के आसपास है तो प्रतिवर्ष 25,000 छात्रों को पढ़ाई के लिए विदेश जाना पड़ता है. प्राइवेट कॉलेजों में सरकारी कोटे की सीट पर तभी प्रवेश मिलता है जब नीट में बहुत अच्छे मार्क्स हों.