राष्ट्रपति के बाद अब राज्यों में भी आदिवासी, पिछड़ी जातियों को प्रमुखता

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बीजेपी हमेशा दूरगामी उद्देश्यों व सधी हुई नीतियों को लेकर चलती है. उसने 2020 में ही आदिवासी वोट बैंक बनाना शुरू कर दिया था. उसके हिसाब से आरएसएस ने अपने वनवासी प्रोग्राम का फ्रेमवर्क बना दिया था. संघ के वनवासी कल्याण आश्रम पहले ही चल रहे थे जो धर्मांतरण को रोकने में सक्रिय थे. बीजेपी ने तभी से 2024 की रणनीति तैयार कर ली थी.

वनवासी इलाके में जितने भी लोग हैं, उनमें सेंध लगाने का एजेंडा था. आदिवासी समुदाय पहले भी एकजुट ही रहता था. यह वोट बैंक दशकों तक कांग्रेस के पास रहा. यह समुदाय पूर्वोत्तर, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना से कर्नाटक तक फैला है. ये ऐसे आदिवासी हैं जो अपने देवताओं की पूजा करते हैं और हिंदू मान्यता रखते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने जब दूसरी बार सत्ता संभाली तो आदिवासियों पर फोकस किया तथा उनके हित में सरकारी योजनाओं व प्रावधानों को शतप्रतिशत जमीन पर लागू करने के लिए मशीनरी बना दी. उस मशीनरी के तहत आदिवासियों तक योजनाएं पहुंची. इससे आदिवासियों का बीजेपी की ओर गहरा झुकाव बढ़ा.

बीजेपी ने अपने परंपरागत वोट बैंक के अलावा पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदाय को अपने पक्ष में लाना शुरू किया. आदिवासियों और ओबीसी के लिए काम करने पर पार्टी को काफी हद तक सफलता मिली. इसे लाउड करने के लिए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया गया जिससे देश के आदिवासी समुदाय को आत्मगौरव की अनुभूति हुई. बीजेपी शहरी मतदाताओं को पहले ही साध रही थी साथ ही उसने उन समुदायों को भी साधा जो कांग्रेस वोट बैंक थे.

कांग्रेस के पास कैडर नहीं

कांग्रेस के पास स्ट्रेटजी या रणनीति बनाने के लिए बहुत सारे लोग हैं लेकिन ऐसा कैडर नहीं है जिसके जरिए वह अपनी नीति लागू कर पाए. ऐसे लोग भी नहीं हैं जो बीजेपी की गलतियां निकाल सकें. अमूमन बीजेपी अपने शासित राज्य में प्रमुखता या डामिनेंस रखनेवाले समुदाय का सीएम नहीं बनाती. छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी आदिवासी को मुख्यमंत्री बनाया. इसका अर्थ यह है कि पार्टी मोदी को मिलनेवाली सीटों में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती.

साय को CM बनाना बहुत बड़ा राजनीतिक संदेश

बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सोची-समझी दीर्घकालीन राजनीति पर मजबूती से काम कर रहा है. द्रौपदी मुर्मू को महिला आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना इसी रणनीति का हिस्सा था. अब विष्णुदेव साय को छत्तीसगढ़ का सीएम चुना जाना भी इसी पहल का विस्तार माना जा रहा है. छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी 32 प्रतिशत है. राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 में से 17 सीटें इस बार बीजेपी ने जीती हैं. खासकर सरगुजा संभाग में जहां से विष्णुदेव साय आते हैं, वहां की 14 में से 14 सीटें बीजेपी ने कांग्रेस से छीनी हैं. छत्तीसगढ़ में ओबीसी और आदिवासी 2 बड़े समुदाय हैं.

इनमें से ओबीसी को बीजेपी ने अपने साथ मजबूती से जोड़ा है. अब साय के चेहरे के साथ आदिवासियों को भी साथ लेने की मजबूत कोशिश हुई है. साय कुनकुरी क्षेत्र के विधायक हैं जो झारखंड से सटा छत्तीसगढ़ का इलाका है. 2024 में झारखंड और ओड़िशा में विधानसभा चुनाव होंगे. बीजेपी लोकसभा चुनाव के साथ ही इन राज्यों में भी बड़ी जीत की तैयारी में है.