अमेरिका ने कहा व्यापार के लिए भारत कठिन जगह, देश तो देखेगा ही अपना हित

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    यद्यपि नेहरू-इंदिरा के जमाने की समाजवादी अर्थव्यवस्था कई दशक पहले समाप्त हो चुकी है और नरसिंहराव व मनमोहन सिंह द्वारा नई आर्थिक नीति शुरू किए जाने के बाद से आयात-निर्यात काफी सुलभ हो गया फिर भी कोटा-परमिट राज की कुछ बंदिशें आज भी कहीं न कहीं कायम हैं. एक उद्योग खोलने या व्यापार शुरू करने के लिए अनेक सरकारी विभागों से विभिन्न प्रकार की अनुमतियां व क्लीयरेंस प्राप्त करना पड़ता है. ब्यूरोकेसी का रवैया सहयोग देने की बजाय काम में अड़ंगे डालने का बना हुआ है. ईज आफ डूइंग बिजनेस (व्यवसाय करने में आसानी) का सिर्फ नाम ही है. यदि ऐसा न होता तो अमेरिका क्यों कहता कि भारत अब भी व्यापार करने के लिए बहुत कठिन और चुनौतीपूर्ण जगह बना हुआ है. ऐसा कहने में अमेरिका का कोई पूर्वाग्रह नहीं है बल्कि वह जो महसूस कर रहा है, वही कह रहा है.

    अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत ने अपने स्वदेशी उद्योगों को प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए जो नए संरक्षणवादी कदम उठाए हैं, वे निवेश की राह में सबसे बड़े रोड़े हैं. रिपोर्ट के अनुसार बढ़े हुए टैरिफ शुल्क, खरीद नियमों के प्रतिस्पर्धी विकल्पों को सीमित करना, तर्कहीन ढंग से सैनिटरी व फाइटोसैनिटरी मानक अपनाना जैसे कई मुद्दे हैं जो भारत को व्यापार के लिए कठिन जगह बनाते हैं. अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में यह भी आरोप है कि भारत का विशिष्ट मानक या स्पेसिफिक स्टैंडर्ड अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल नहीं खाता. भारत ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (वर्ल्ड सप्लाई चेन) से उत्पादों को मंगाना प्रभावी ढंग से बंद कर दिया जिससे द्विपक्षीय व्यापार का विस्तार सीमित हुआ है.

    भारतीय टेक कंपनियों में रुचि

    अमेरिका चाहे जो टिप्पणी करे, यह सच है कि चीन के प्रति झुकाव कम हो जाने से विदेशी निवेशकों की भारत में दिलचस्पी बढ़ी है. ई-कामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट ने भारत में 26,797 करोड़ रुपए का निवेश करने का मन बनाया है. पेमेंट कंपनी पेटीएम भी शीघ्र ही बाजार में उतरने वाली है. जोमॅटो के शेयर ओवरसब्सक्राइब रहे. कम्प्यूटिंग और व्यवसायिक प्रतिभा की वजह से भारत वेंचर कैपिटल के लिए सही जगह है. विदेशी भारत में धन कमाने की संभावनाएं परख रहे हैं क्योंकि यहां की मध्यम श्रेणी के लोगों का बहुत बड़ा उपभोक्ता वर्ग है. भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय लगभग डेढ़ लाख रुपए है. कारोबार चलाने में मुश्किलों के बावजूद चीन की तुलना में भारत अधिक खुला हुआ है.

    संरक्षण देना गलत नहीं

    भूमंडलीकरण के दौर में स्थानीय उद्योगों से लेकर किसानों तक को विषम प्रतिस्पर्धा से संरक्षण देना जरूरी है. यहां का डेयरी उद्योग संकट में न पड़े इसलिए डेनमार्क से सस्ते डेयरी प्रोडक्ट मंगाना भारत ने स्वीकार नहीं किया. इसके अलावा विदेशी उद्योजकों को भारत के लोगों को नौकरी देने तथा यहां के सहायक उद्योगों से सामग्री खरीदने की भी शर्त है. अमेरिका भी तो अपना हित देखता है तभी तो ट्रम्प ने राष्ट्रपति रहते ‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा लगाया था. संरक्षणवाद के बावजूद भारत ने अंतरराष्ट्रीय करार भी किसी भी धारा को भंग नहीं किया.