गुलाम नबी के बाद आनंद शर्मा का इस्तीफा, पूछ कर क्यों नहीं देते जिम्मेदारी?

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    कांग्रेस हाईकमांड जब किसी को लायक समझता है तभी तो जिम्मेदारी देता है. जब किसी नेता की योग्यता पर पार्टी को इतना विश्वास है तो उसे दायित्व देने से पहले पूछ लेना चाहिए कि क्या वह इसके लिए तैयार है? उससे विस्तृत चर्चा कर सुझाव भी लिए जा सकते हैं कि उस नेता के मन में कौन सी शंका-कुशंका है. किसी नेता का मन टटोले बिना उसे किसी पद की जिम्मेदारी देने का एलान कर देना कहां तक उचित है? 

    यह तो फौज जैसी बात हुई कि जाओ और तुरंत मोर्चे पर डट जाओ! कांग्रेस हाईकमांड का सामंती रवैया उसके कुछ खुद्दार नेताओं को रास नहीं आ रहा है. बगैर पूछे और परामर्श किए किसी पद पर नियुक्त कर देने का रवैया लोकतंत्र में सुसंगत नहीं कहा जा सकता. केंद्र के अलावा इतने राज्यों से सत्ता खो देने वाला कांग्रेस नेतृत्व आखिर किस मुगालते में है? अपने को सर्वशक्तिमान माननेवाला कांग्रेस हाईकमांड यह क्यों नहीं समझता कि अब फरमान जारी करने का जमाना नहीं रहा. संबंधित नेता को कोई काम सौंपना है तो पहले उसकी मर्जी जान लेनी चाहिए.

    स्वाभिमान का सवाल

    कांग्रेस का जी-23 गुट पहले ही पार्टी नेतृत्व को बगावती तेवर दिखाता रहा है. इस गुट के नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की मांग करनेवाला पत्र लिखा था, जिस पर 23 नेताओं के हस्ताक्षर थे. इस गुट को कोई महत्व न देते हुए उसकी उपेक्षा की जाती रही. इन नेताओं से चर्चा करने का सौजन्य भी नहीं दिखाया गया. ये सभी नेता अनुभवी और पुराने हैं. 

    कठिन और चुनौतीपूर्ण समय में इनकी राय पार्टी नेतृत्व के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है लेकिन हाईकमांड निर्णय प्रक्रिया में इन्हें सहभागी बनाना नहीं चाहता. संभवत: वह समझता है कि ये नेता अपनी गरज से पार्टी में बने हुए हैं. एकपक्षीय तौर पर हुक्मनामा जारी करने से इन नेताओं के स्वाभिमान को ठेस लगती है.

    अनदेखी का आरोप

    पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि वे स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं करेंगे. परामर्श प्रक्रिया में उनकी अनदेखी की गई. इतने पर भी वे राज्य में पार्टी प्रत्याशियों के लिए प्रचार करना जारी रखेंगे. राज्यसभा में कांग्रेस उपनेता तथा पूर्व केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री रहने के बाद भी शर्मा से उनके गृहराज्य हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर कोई राय नहीं ली गई कि कौन सी सीट पर पार्टी की कैसी स्थिति है और कहां कौन सा उम्मीदवार ठीक रहेगा? 

    बीजेपी के मुकाबले चुनाव जीतने के लिए कैसी रणनीति अपनाई जा सकती है? कांग्रेस अध्यक्ष ने गत 26 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस स्टीयरिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में आनंद शर्मा की नियुक्ति कर दी लेकिन इन 4 महीनों में उनसे कोई परामर्श करना जरूरी नहीं समझा. शर्मा समझ गए कि यदि पार्टी चुनाव में हारी तो ठीकरा उन पर फोड़ा जाएगा, इसलिए उन्होंने इस्तीफा देना मुनासिब समझा.

    गुलाम नबी आजाद का मामला

    आनंद शर्मा के समान ही गुलाम नबी आजाद जी-23 समूह के  सदस्य हैं. उन्होंने भी कुछ दिनों पहले जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की अभियान समिति (कैम्पेन कमेटी) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उनसे पूछे बगैर उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया था. गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा का टर्म पूरा करने के बाद कांग्रेस ने उनकी उपेक्षा करते हुए पुन: उम्मीदवारी नहीं दी. 

    जिस तरह आजाद को राज्यसभा से विदाई देते समय प्रधानमंत्री मोदी की आखों में आंसू छलक आए, उससे यही लगा कि बीजेपी का आजाद के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा है और वह कश्मीर में उनका इस्तेमाल करने पर विचार कर सकती है. आखिर पहले भी तो हिमंत बिस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी की राह पकड़ी थी. कांग्रेस नेतृत्व को समझना चाहिए कि जी-23 नेता सिर्फ पद के आकांक्षी नहीं हैं, वे निर्णय प्रक्रिया में अपना सहभाग चाहते हैं.