Big blow to BJP, most prosperous state Karnataka lost

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्रीय मंत्रियों के पूरी ताकत लगा देने के बावजूद बीजेपी के हाथ से कर्नाटक जैसा सबसे समृद्ध राज्य निकल गया. दक्षिण के अपने एकमात्र किले को खो देना उसके लिए बड़ा आघात है. राष्ट्रीय स्तर पर भी उसकी साख प्रभावित हुई है. विपक्ष का हौसला बढ़ गया है कि बीजेपी अजेय नहीं रही. उसे पछाड़ना मुमकिन है. बीजेपी का कर्नाटक में वर्चस्व प्रभावशाली लिंगायत समुदाय के समर्थन के बल पर था. यह समुदाय कर्नाटक की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत है. इस बार कांग्रेस ने लिंगायत बहुल क्षेत्रों की 42 सीटों पर जीत हासिल की जबकि 2018 के चुनाव में उसे यहां 21 सीटें मिल पाई थीं. लिंगायत प्रभाव के क्षेत्र में बीजेपी की सीटें पिछली बार की 38 से घटकर 22 रह गई. कर्नाटक में बीजेपी शहरी क्षेत्रों में सफल रही लेकिन ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस ने बाजी मारी. कर्नाटक में डबल इंजन सरकार होने और प्रधानमंत्री द्वारा खुद को चुनाव में झोंक देने के बाद भी बीजेपी इसलिए हारी क्योंकि बीजेपी सरकार के मंत्रियों ने 2018 में किए गए चुनावी वादों को पूरा नहीं किया था. एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर काम कर गया. जनता ने बदलाव का वोट दिया. बीजेपी की हार की एक वजह यह भी रही कि जनता ने बढ़-चढ़ कर मतदान किया. यह पहला मौका था जब 73.19 फीसदी वोटिंग हुई. औसत से 5 से 6 फीसदी ज्यादा मतदान ने बीजेपी का गणित बिगाड़ दिया. कर्नाटक की बोम्मई सरकार के 14 मंत्री चुनाव हार गए. पीएम मोदी की रैलियां, कई किलोमीटर लंबे रोड शो, अमित शाह की रणनीति तथा केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान की संगठन को सक्रिय करने की भारी मशक्कत के बाद भी बीजेपी सिर्फ 66 सीटों पर सिमट कर रह गई. येदियुरप्पा को केवल मुखौटा बनाकर बीजेपी ने लिंगायत समुदाय को नाराज कर दिया था. येदि को चुनाव मैदान से दूर रखा गया. उनके बेटे विजयेंद्र से भी कोई स्पष्ट वादा नहीं किया गया. जनता के बीच यह संदेश गया कि अगर येदियुरप्पा को चुनाव नहीं लड़ाना था तो उन्हें सजावटी चेहरा बनाकर लिंगायत समुदाय को क्यों ठगा गया? कांग्रेस की बजरंग दल पर बैन लगाने की घोषणा को बीजेपी ने चालाकी से बजरंगबली से जोड़ दिया था और उसके नेताओं ने कांग्रेस के राम और हनुमान विरोधी होने का प्रचार किया था लेकिन कर्नाटक के समझदार मतदाता इस झांसे में नहीं आए. कर्नाटक में पराजय के साथ ही बीजेपी के लिए दक्षिण का गेट वे या दरवाजा बंद हो गया. आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी नदारद है. बीजेपी के लिए अब दक्षिण में तेलंगाना ही एकमात्र ऐसा राज्य बचा है जहां वह अपनी मौजूदगी को प्रभावी बनाने की कवायद में जुटी है. वहां भी के. चंद्रशेखर राव को टक्कर देना आसान नहीं है. हिमाचल प्रदेश के बाद इस वर्ष के विधानसभा चुनावों में यह बीजेपी की दूसरी हार है. खासतौर पर कर्नाटक की पराजय का झटका बीजेपी को जोरों से लगा है जिसके नेता बार-बार कांग्रेस मुक्त भारत की बात कहा करते थे. विपक्ष के नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल भी बीजेपी को चुनाव मैदान में जीत नहीं दिला सका.