Center supports those who want to separate Gorkhaland from Bengal

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बंगाल के उत्तरी हिस्से को पृथक राज्य बनाने की मांग फिर से उठ रही है. इस मांग को लेकर दार्जिलिंग में बिमल गुरूंग के गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, हमरो पार्टी के अजय एडवडर्स तथा टीएमसी के बागी नेता विनय तमांग ने संयुक्त रूप से आवाज उठाई है. इसी दौरान बिमल गुरूंग और अलीद्वारपुर निर्वाचन क्षेत्र से बीजेपी के लोकसभा सदस्य तथा केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्यमंत्री जॉन बारला के बीच हुई मुलाकात ने नई अटकलों को जन्म दिया है.

गुरूंग ने मांग की कि केंद्र सरकार पहाड़ी क्षेत्र में स्थायी राजनीतिक समाधान के लिए कदम उठाए. गुरूंग और बारला के बीच यह बैठक गुरूंग के बीजेपी के साथ अपने पुराने संबंधों को पुनर्जीवित करने का स्पष्ट संकेत है. गुरूंग की मदद से ही बारला लोकसभा चुनाव जीते थे. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गोराालैंड की मांग की सख्त विरोधी रही हैं और बंगाल का विभाजन नहीं चाहतीं. इसके विपरीत देखा जाए तो गोरखालैंड की मांग 100 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है. पिछले 3 दशकों में इस मुद्दे को लेकर कई बार हिंसक आंदोलन हो चुके हैं. दार्जिलिंग इलाका एक समय राजशाही डिवीजन में शामिल था.

1912 में यह भागलपुर का हिस्सा बना. आजादी के बाद 1947 में इसका बंगाल में विलय हो गया. अ.भा. गोरखा लीग ने 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को ज्ञापन सौंपकर बंगाल से अलग होने की मांग की थी. दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी और कूचविहार को मिलाकर अलग राज्य के गठन की मांग भी हुई थी. गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के नेता सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड की मांग करते हुए हिंसक आंदोलन शुरू किया.

1985 से 1988 तक ये पहाड़ियां हिंसा की चपेट में रहीं. इस दौरान हिंसक घटनाओं में 1300 लोग मारे गए थे. तब बंगाल की ज्योति बसु के नेतृत्ववाली लेफ्ट फ्रंट सरकार ने सुभाष घीसिंग के साथ एक समझौते के तहत दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद का गठन किया था. 2007 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बैनर तले नई क्षेत्रीय पताकत का उदय हुआ और बिमल गुरूंग के नेतृत्व में नए सिरे से पृथक गोरखालैंड आंदोलन शुरू हुआ. गुरूंग का आरोप है कि गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) को समझौते के मुताबिक विभाग नहीं सौंपे गए.

5 वर्ष बीतने पर भी न तो अधिकार मिला, न पैसा! बंगाल सरकार ने हमे खुलकर काम नहीं करने दिया बल्कि गोरखा बहुल प्रदेश पर बांग्ला भाषा थोप दी. कांग्रेस ने मौजूदा हालात के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बदले की राजनीति को जिम्मेदार ठहराया है जबकि बीजेपी ने भी इसके लिए गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रति राज्य सरकार के सौतेले रवैये को दोषी करार दिया है. लंबे समय बाद एक बार फिर गोरखालैंड की मांग उठ रही है तो इसके नतीजे दूरगामी होंगे. लगता है कि ममता को सबक सिखाने के लिए केंद्र गोरखालैंड की मांग करनेवालों का साथ दे सकता है.