तेलंगाना के नए CM रेवंत रेड्डी के सामने चुनौतियां, खाली खजाना, कैसे पूरी करेंगे 6 गारंटियां

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– नौशाबा परवीन

तेलंगाना स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (RTC) कुल 6,000 करोड़ रूपये के घाटे में चल रहा है. आरटीसी को लगभग 2,500 करोड़ रूपये की सालाना आय महिला यात्रियों से होती है. ऐसे में तेलंगाना के दूसरे मुख्यमंत्री अनुमूला रेवंथ रेड्डी के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक चुनौती यह है कि खाली पड़े राज्य के खज़ाने से उन छह गारंटियों को कैसे पूरा किया जाये, जो उनकी पार्टी कांग्रेस ने राज्य विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं को दी थीं और जो उनकी जीत का मुख्य कारण बनीं. इनमें से एक सबसे आकर्षक गारंटी यह भी है कि महिलाएं आरटीसी में मुफ़्त सफ़र करेंगी.

महिलाओं को राज्य की बसों में मुफ़्त सफ़र कराने के लिए वह 2,500 करोड़ की भरपाई आरटीसी को कहां से करेंगे जो पहले ही 6000 करोड़ रुपए के घाटे में चल रही है. उन्हें एक वायदा यह भी निभाना है कि किसानों के 2 लाख रूपये तक का कर्ज माफ करना है. बीआरएस सरकार ने किसानों का एक लाख रूपये तक का कर्ज माफ करने के लिए 21,000 लाख करोड़ रूपये का बजट रखा था. कांग्रेस सरकार को अपनी यह गारंटी पूरी करने के लिए अगले पांच वर्षों में कम से कम 35,000 लाख करोड़ रूपये का बजट आवंटित करना होगा.

राज्य सरकार के डाटा के अनुसार कर्ज माफी के लिए लगभग 42 लाख किसानों की पहचान की गई थी. कांग्रेस ने रायथू भरोसा गारंटी योजना के तहत प्रति एकड़ प्रति वर्ष किसानों को 15,000 रूपये व खेत श्रमिकों को 12,000 रूपये देने का भी वायदा किया है. बीआरएस सरकार की रायथू बंधु योजना के तहत किसानों को 10,000 रूपये सालाना दिए जाते थे. इस योजना के तहत पिछले साढ़े पांच वर्षों के दौरान बीआरएस सरकार ने 72,000 करोड़ रूपये वितरित किये थे, जोकि 70 लाख किसानों को मिले. अगर इसी पैमाने पर कांग्रेस को यह योजना लागू करनी है तो उसे अगले पांच वर्षों में लगभग एक लाख करोड़ रूपये की ज़रूरत पड़ेगी.

प्रशासनिक अनुभव नहीं

रेवंत रेड्डी के समक्ष छह गारंटियों को पूरा करने की चुनौती तो है ही, उनके सामने संख्या की दृष्टि से पिछली सरकार की तुलना में विपक्ष भी मजबूत है. पिछली विधानसभा में बीआरएस के 88 सदस्य थे यानी 119 के सदन में केवल 31 विधायक विपक्ष में थे. इस बार कांग्रेस के सामने 55 विधायकों का विपक्ष है. इसके अतिरिक्त रेवंत रेड्डी को प्रशासनिक अनुभव नहीं है, क्योंकि वह कभी मंत्री तक नहीं रहे हैं. अब उन्हें भारी कर्ज़ में डूबे राज्य की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी मिल गई है.

फिर भी 54 वर्षीय रेड्डी को हल्का या कमजोर समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए. उन्होंने 2017 में कांग्रेस की सदस्यता उस समय ग्रहण की थी, जब यह पार्टी राज्य में हाशिये पर पहुंच चुकी थी. तब कांग्रेस किसी गिनती में ही नहीं थी और हर कोई बीआरएस का मुख्य प्रतिद्वंदी बीजेपी को मान रहा था. रेड्डी से कहा जा रहा था कि वह लंगड़े घोड़े पर दांव लगा रहे हैं. लेकिन मात्र छह वर्ष के भीतर रेड्डी ने तेलंगाना को कांग्रेस की झोली में डाल दिया. फुटबॉल लीजेंड डियागो माराडोना के जबरदस्त फैन रेड्डी ने चुनाव में तो कांग्रेस के लिए गोल स्कोर कर दिया, लेकिन आगे का रास्ता उनके लिए कठिन नजर आ रहा है.

रेड्डी स्वयं-निर्मित नेता हैं. वह जुझारू व जांबाज भी हैं. जब 2015 में उन्हें राज्य के भ्रष्टाचार-रोधी ब्यूरो ने तथाकथित कैश-फॉर-वोट घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया था तो उन्होंने केसीआर से कहा था, “मैं सुनिश्चित करूंगा कि तुम्हारा राजनीतिक करियर खत्म हो जाए. मैं टाइगर के रूप में वापस आऊंगा.” रेड्डी ने 2000 में मुख्यमंत्री बनने का सपना देखा था. वह 2006 में जिला परिषद के सदस्य बने और फिर अगले 17 साल तक वह अपने सपने को साकार करने में लगे रहे.

रेड्डी की चुनावी उपलब्धि का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि अविभाजित आंध्रप्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में कांग्रेस ने कभी भी 20-30 सीटों से अधिक नहीं जीती थीं, जबकि उस समय कांग्रेस अपने चरम पर थी. इस बार 64 सीटें जीतना वास्तव में कमाल है. कांग्रेस की जीत के अनेक कारण दिए जा रहे हैं. लेकिन मुख्य बात यह रही कि रेड्डी ने तेलंगाना के मतदाताओं में इंदिरा गांधी की सुखद यादों को ताजा किया. रेड्डी ने ‘इंदिराअम्मा राज्यम’ (इंदिरा गांधी की तरह शासन) का नारा दिया, जिससे कांग्रेस को ग्रामिण मत भर भरके मिले.

उन्होंने बुजुर्ग मतदाताओं की पहचान की और बहुत सी महिलाएं आज भी इंदिरा गांधी को कांग्रेस का पर्याय मानती हैं. इंदिरा गांधी ने 1980 में मेडक से लोकसभा चुनावलड़ा था. मतदाताओं को आज भी इंदिराअम्मा याद हैं. रेड्डी ने सुनिश्चित किया कि प्रियंका गांधी गांवों में अधिक प्रचार करें.