कांग्रेस एक परिवार जबकि BJP एक व्यक्ति के भरोसे

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    कभी सिर्फ हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित माने जानेवाली बीजेपी ने यदि सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में अपनी पहचान बना ली है तो इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभावशाली नेतृत्व है. 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले तक मोदी राष्ट्रीय नेता तो क्या संसद सदस्य भी नहीं थे. उस समय तक लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह व अरुण जेटली को केंद्रीय नेता माना जाता था. 

    मोदी के नेतृत्व में लड़े गए 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बाकी शीर्ष नेता नेपथ्य में चले गए और मोदी का सितारा चमक उठा. अपने व्यक्तित्व और कार्यशैली से मोदी ने बीजेपी के बाकी नेताओं को काफी पीछे छोड़ दिया. आज तो यही चमक-दमक मोदी से ही है. विश्व के विभिन्न देशों के शीर्ष नेताओं जैसे जर्मन चोसलर एंजेला मर्केल और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को मोदी ने लोकप्रियता के मामले में बहुत पीछे छोड़ दिया है. विश्वव्यापी एप्रूवल रेटिंग में से सबसे आगे हैं. 

    बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मोदी को विश्व के शीर्ष नेताओं में प्रमुख स्थान मिलने पर बधाई दी और कहा कि पार्टी की पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक सरकारें हैं लेकिन अभी भी उसका ‘बेस्ट’ नहीं आया है. पार्टी मोदी के नेतृत्व में बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल में अपना आधार मजबूत करेगी.

    बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि बीजेपी परिवारवादी पार्टी नहीं है. यह किसी परिवार द्वारा नहीं बल्कि जनकल्याण की संस्कृति से चलाई जाती है. बैठक में 100 करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण तथा 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने जैसी बातों के लिए मोदी की सराहना की गईं.

    मोदी ही सर्वेसर्वा

    यद्यपि बीजेपी का संगठनिक ढांचा मजबूत है और उसे अपने पितृ संगठन आर एस एस का आशीर्वाद प्राप्त है लेकिन फिर भी पार्टी के उत्कर्ष का श्रेय मोदी को है. यही पार्टी अटल और आडवणी के नेतृत्व में लाचार बनी हुई थी. आडवाणी 2004 और 2009 का आम चुनाव नहीं जिता पाएं. जब 2014 में मोदी को आगे लाया गया तभी पार्टी को सफलता मिली. 

    फिर 2019 में बीजेपी ने और भी मजबूती हासिल कर ली. सभी जानते हैं कि मोदी सर्वेसर्वा की स्थिति रखते हैं और सारे बड़े फैसले लेते हैं. अपवादस्वरूप सुब्रमण्यम स्वामी को छोड़ दिया जाए तो पार्टी में कोई भी मोदी की नीतियों या कदमों की आलोचना नहीं करता. मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि मोदी ही बीजेपी की नैया के खिवैया हैं.

    गांधी परिवार से ही कांग्रेस में एक जुटता

    कांग्रेस पर परिवारवादी पार्टी होने का आरोप बीजेपी शुरु से ही लगाती आई है. बेशक कांग्रेस को एक सूत्र में जोड़े रखने के लिए पार्टीजन गांधी परिवार के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं. पार्टी की ब्राडिंग में गांधी-नेहरू की कांग्रेस के रूप में रही है. सोनिया गांधी 2 दशक से भी ज्यादा समय से कांग्रेस अध्यक्ष हैं. राहुल गांधी ने 2019 के चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन पार्टी के शीर्ष नेता की उनकी हैसियत कायम है. 

    पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी इन दिनों राजनीतिक सक्रियता दिखा रही है और पार्टी यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर उनसे उम्मीदें बांधी हुए हैं. कांग्रेस में गांधी परिवार को छोड़ दिया जाए तो अन्य किसी नेता की राष्ट्रीय पहचान नहीं है. यह तथ्य है कि इस परिवार ने देश को 3 प्रधानमंत्री (नेहरु, इंदिरा और राजीव) दिए. सोनिया गांधी ने भी 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह सरकार का रिमोर्ट कंट्रोल अपने हाथों में रखा. बीजेपी वाले कितनी ही अलोचना करें, परिवारवाद जारी रखना कांग्रेस की मजबूरी है.