महाराष्ट्र पर सूखे का साया तुरंत सही नियोजन आवश्यक

Loading

प्रकृति का कोई भरोसा नहीं है. उसके तेवरों के आगे किसी की भी नहीं चलती. जल ही जीवन है. दैनंदिन घरेलू उपयोग के अलावा कृषि से लेकर उद्योग तक पानी की आवश्यकता पड़ती है. इसीलिए किसान आतुरता से वर्षा की राह देखते हैं. इतना ही नहीं, राज्य और देश की अर्थव्यवस्था भी मानसून पर निर्भर रहती है. यदि मानसून प्रतिकूल रहा तो महंगाई को पंख लग जाते हैं और सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच जाती है. विदेश से अनाज मंगाने की नौबत आ जाती है तथा सब्जियों के दाम आसमान छूने लगते हैं. इस वर्ष देश में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में रिकार्डतोड़ अतिवृष्टि हुई जिससे जन-धन की भारी क्षति हुई.

इसके विपरीत अन्य राज्य वर्षा के लिए तरसते रह गए. अगस्त बीत रहा है लेकिन महाराष्ट्र में संतोषजनक वर्षा नहीं हुई. सितंबर में भूले भाके छुटपुट बारिश होती है जो नहीं के बराबर रहती है. जुलाई-अगस्त ही ऐसे महीने हैं जिनमें पर्याप्त वर्षा की उम्मीद की जाती है. इसका नतीजा देखा जा रहा है अनाज महंगा हो रहा है. पहले टमाटर ने 200 रुपए किलो तक हाईजम्प मारा और अब प्याज रूलाने लगा है. जब बारीश न हो तो ऐसा होना ही है. अगस्त इतिहास में सबसे सूखा रहा. अब अनुमान जताया जा रहा है कि 4 सितंबर से बारिश का आखिरी दौर संभव है.

20 जिलो में संकट

विदर्भ, मराठवाडा और मध्य महाराष्ट्र में सूखे का साया मंडराने लगा है और हालत गंभीर होती चली जा रही है. प्यास लगने पर कुआं खोदने की हमारी प्रवृत्ति है. सरकारी कामकाज का ऐसा ही नजारा वर्षों में देखा जा रहा है. महाराष्ट्र के लगभग 20 जिले दुष्काल या सूखे का संकट झेल रहे हैं. फसले मुरझा रही है और किसानों की हालत दयनीय बनी हुई हैं. सरकार तत्काल उपाययोजना न करते हुए निरीक्षण, सर्वेक्षण, रिपोर्ट तैयार करने में लगी रहती है फिर स्थिति का मंथन-चिंतन करने के साथ निर्णय लिया जाता है. मराठवाडा में 18 प्रतिशत कम वर्षा हुई है. मध्य महाराष्ट्र में औसत से 21 फीसदी तक तथा विदर्भ में 9 प्रतिशत कम बारिश हुई. मराठवाडा के जलाशयों में सर्वाधिक 48 प्रतिशत पानी की कमी है. जायकवाडी बांध में 33 प्रतिशत ही जल बचा है.

ट्रेन से पानी पहुंचाया था

कुछ वर्ष पूर्व मराठवाडा के लातूर में भीषण जलसंकट था तब वहां ट्रेन से पानी पहुंचाने की नौबत आ गई थी. राज्य में आज भी 1700 बस्तियों, गांवों में टैंकर से जलापूर्ति की जाती है. किसानों ही नहीं आम नागरिकों की भी चिंता बढ़ गई है. सिंचाई प्रकल्पों में 35.69 प्रतिशत जल बचा है. नांदेड, हिंगोली जिलो को छोड़कर मराठवाड़ा में सूखे की गंभीर स्थिति है. संभाजीनगर, जालना, बीड, धाराशिव, लातूर, परभणी में बारिश न होने से सूखे जैसे हालात हैं. मराठवाडा में 47 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई है लेकिन विदर्भ में कपास और सोयाबीन की खेती पर असर पड़ा है. नागपुर की तुलना में अमरावती जिलों में जल भंडारण की स्थिति खराब है.

सब मिलकर संकट से निपटें

ऐसे कठिन समय में सरकारी मशिनरी रूखापन न दिखाते हुए नियमों की आड़ न ले बल्कि मानवीय आधार पर किसानों को मदद पहुंचाए. सभी सांसद, विधायक, मंत्री वक्त की नजाकत को समझें. राजनतिक उखाड़पछाड़ ही सबकुछ नहीं है. जनता की तकलीफों पर भी गौर करना चाहिए. किसानों को न वेतन मिलता है, न वैभव. उनके लिए सरकारी कर्मचारियों जैसा सातवां वेतन आयोग भी नहीं है. मौसम की मार के बाद उनकी शासन-प्रशासन से मदद की उम्मीदें बढ़ जाती है. चुनावी राजनीति ही सबकुछ नहीं है. नेताओं को अपना जनसेवी चेहरा दिखाना चाहिए. किसान अनवरत परिश्रम करता है लेकिन यदि बारिश दगा दे जाए तो उसकी उम्मीदें टूट जाती हैं. इस वक्त सरकार व प्रशासन तुरंत सक्रियता दिखाते हुए किसानों की मदद के लिए आगे आएं.