गुजरात मॉडल के कारण, देश के BJP विधायकों को छूटे पसीने

    Loading

    देश के विभिन्न राज्यों के बीजेपी विधायकों में बेचैनी देखी जा रही है. इसलिए नहीं कि 2023 में देश के 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव की चुनौती है, बल्कि इसलिए कि पता नहीं अब की बार उन्हें पार्टी टिकट देगी या नहीं! अधिकांश वर्तमान विधायकों की सीनियारिटी के बावजूद उनका टिकट काटकर नए चेहरों को सामने लाने की रणनीति पर बीजेपी चल रही है. गुजरात में बेरहमी से 30 वर्तमान विधायकों का टिकट काट दिया गया. 

    पार्टी हाईकमांड का रुख समझते हुए पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने स्वेच्छा से खुद को चुनावी मैदान से हटा लिया और सीट की दावेदारी नहीं की. नए प्रत्याशियों को मौका देने के बीजेपी नेतृत्व के रवैये को देखते हुए देश के अन्य 9 राज्यों के बीजेपी विधायकों को भी पसीना छूटने लगा है जहां 2023 में विधानसभा चुनाव होनेवाला है. 

    ये राज्य हैं- मध्यप्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड और मणिपुर. इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव होगा. इसमें भी कोई वर्तमान सांसद सुनिश्चित रूप से दावा नहीं कर सकता कि उसे पार्टी पुन: अपना उम्मीदवार बनाएगी. अधिक उम्रवाले व कम परफार्मेंस देनेवालों को टिकट नहीं दिया जाएगा.

    कोई विधायक यह कहकर सीट की दावेदारी नहीं कर सकता कि वह अपने चुनाव क्षेत्र से बार-बार विजयी होता रहा है. यदि वे 60-65 वर्ष की आयु के हैं तो भी इस आधार पर उन्हें घर बैठने को कहा जा सकता है कि नए चेहरे को सामने आने दें. कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार सहित 20 विधायक ऐसे हैं जिनकी उम्र 65 वर्ष को पार कर गई है. पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा 77 वर्ष के हैं. उन्होंने पहले ही कह दिया है कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन वे चाहते हैं कि उनकी सीट पर उनके बेटे बीवाय विजयेन्द्र को पार्टी उम्मीदवारी दे. 

    कोई भी केंद्रीय मंत्री या राज्य का नेता केंद्रीय नेतृत्व के फैसले को चुनौती नहीं दे सकता. सभी को अहसास करा दिया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी के प्रभामंडल की वजह से वे अपने पदों पर हैं. पार्टी के लिए कोई विधायक, सांसद या मंत्री अनिवार्य नहीं है. वहां सिर्फ ‘मोदी मैजिक’ ही चलता है. बीजेपी का कोई भी क्षेत्रीय नेता अपनी लोकप्रियता या प्रभाव का दावा नहीं कर सकता. उन्हें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जताया जाता है कि मोदी-शाह की कृपा से ही उनका राजनीतिक अस्तित्व बना हुआ है.

    क्षत्रप पनपने नहीं दिए जाते

    राज्यों में ऐसे क्षत्रप पनपने नहीं दिए जाते जो केंद्र की किसी नीति से असहमति जताएं. हर नेता को मोदी के सुर में सुर मिलाना ही पड़ता है. राज्यों के मुख्यमंत्री भी अकस्मात बदल दिए जाते हैं. गुजरात में विजय रुपानी को कोई कारण बताए बगैर सहसा हटा दिया गया और भूपेंद्र पटेल को कुर्सी दे दी गई. असम में सर्वानंद सोनोवाल लोकप्रिय हो रहे थे. उन्हें सीएम पद से हटाकर हिमंत बिस्वा सरमा को आसीन कर दिया गया. उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के पहले 2 सीएम बदले गए.

    चुनाव की धुरा मोदी संभालते हैं

    राज्यों के चुनाव की धुरा प्रधानमंत्री मोदी खुद ही संभालते हैं. हिमाचल प्रदेश की चुनाव सभाओं में उन्होंने कहा कि उम्मीदवार कौन है, उसका चेहरा मत देखो. कमल पर बटन दबाओ तो वोट सीधा मोदी के खाते में जाएगा. वे डबल इंजिन की सरकार का फायदा भी बताते हैं. पार्टी में नेतृत्व का एकाधिकार है, विकेंद्रीकरण नहीं है. विपक्ष का बिखराव ही मोदी की ताकत है. एनडीए सिर्फ नाम का हैं, बीजेपी का वर्चस्व बना हुआ है. लोकसभा में एनडीए गठबंधन की कुल 353 सीटों में से बीजेपी की 303 सीटें हैं. मोदी तेलंगाना और कर्नाटक में अभी से चुनावी बिसात बिछाने में लगे हुए हैं. 

    मोदी की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय छवि बनी हुई है. केंद्रीय नेतृत्व की पार्टी नेताओं से अपेक्षा रहती है कि वे हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर जोर दें तथा देश की समस्याओं के लिए प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को दोषी ठहराएं. 2024 के लोकसभा चुनाव में भव्य राममंदिर निर्माण, काशी विश्वनाथ व महाकालेश्वर उज्जैन का गलियारा जैसी भावनात्मक उपलब्धियों पर जोर रहेगा. विपक्ष का बिखराव मोदी की असली ताकत है. महंगाई, बेरोजगारी, नोटबंदी, चीन की घुसपैठ जैसे ज्वलंत मुद्दों का बीजेपी के पास कोई जवाब नहीं हैं और वह देना भी नहीं चाहती.