E-Rupee can be a gamechanger if the government pays attention

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भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़े उत्साह से ई-रुपया को देश की मुद्रा के क्रमागत विकास के महत्वपूर्ण चरण के रूप में लॉन्च किया था. लेकिन सरकारी आंकडे के मुताबिक अभी तक महज 131 करोड़ के मूल्य का ई-रुपया ही चलन में है. इसमें खुदरा क्षेत्र में कुल तकरीबन साढ़े चार करोड़ रुपये और थोक में कुल साढे़ 126 करोड़ रुपये है. कुल ई रुपये के चलन में थोक की संख्या यदि 96 फीसद से ज्यादा है, तो जाहिर है कि इसमें नौ बैंकों का जिनमें भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, यस बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और एचएसबीसी जैसे बड़े बैंकों का प्रमुख योगदान है. 

लोगों ने डिजिटल भुगतान खूब किया लेकिन ई रूपये को नहीं अपनाया यहां तक कि पेटीएम और गूगल पे के मुकाबले ई रुपये से भुगतान एक फीसदी भी नहीं रहा. आखिर केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा यानी सीबीडीसी का यह प्रोजेक्ट इतनी बुरी तरह असफल क्यों दिख रहा है? पेटीएम, यूपीआई और दूसरी डिजिटल मुद्रा अपनाने वाले लोग आखिर ई-रुपये से क्यों दूर हैं? बिना पारदर्शिता और नागरिकों की भागीदारी के विकसित किए गए सीबीडीसी या ई रूपये से भविष्य में कितनी उम्मीद रखी जाए.

ज्यादातर लोग नहीं जानते कि ई रूपया क्या बला है, खुदरा लेनदेन में इसे कैसे इस्तेमाल करना है, यह किस कदर सुरक्षित है और इसके फायदे क्या हैं? कौन से कौन से बैंक इससे संबंधित हैं. जनजागरूकता की भारी कमी है. सरकार लोगों को यह बता नहीं पाई कि ई-रुपया एक डिजिटल टोकन, एक लीगल टेंडर है, यह भरोसेमंद और पूर्णतया वैध है. ये उसी मूल्यवर्ग में जारी नोट और सिक्कों का डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप है, जिसमें वर्तमान में कागजी मुद्रा और सिक्के प्रचलित हैं. बैंकों के माध्यम से अपना डिजिटल वॉलेट लेकर कोई भी ई-रुपये का लेनदेन किसी व्यक्ति या दुकान वगैरह के बीच ठीक उसी तरह से कर सकता है जैसे अपने बैंक में पैसे की जमा व निकासी करता है. वह इसे मोबाइल फोन या दूसरे उपकरणों पर रख सकता है. इसे रखने पर कैश को लेकर निर्भरता कम हो जाएगी. इसको इंटरनेट भी नहीं चाहिये. वित्तीय लेनदेन में यह सुधारात्मक प्रयोग ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है, जिसके चलते यह बेहद सुरक्षित और सरल है. 

आरबीआई द्वारा संचालित करेंसी के इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन में कोई व्यक्तिगत, संस्थागत हैंडलर शामिल नहीं होता है, जैसा कि यूपीआई लेनदेन के मामले में होता है. सरकार यह भी बता सकती थी कि नोट छापने और उसके रखरखाव में हर साल 6000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं, ई रुपया लागू होने पर यह खर्च बहुत कुछ बचेगा व विकास में लगेगा. डिजिटल रुपये से नकली करेंसी पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, रुपये को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का व्यय भी न्यून होगा. बेशक, डिजिटल रुपये से इन सारी समस्याओं का समाधान मिल सकेगा पर सरकार संभवतः यह सब कुछ समझाने में असफल रही. इस विषय में जनजागरूकता का अभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है. आमजन आज ई रूपये से बहुत परिचित नहीं है और ऊपर से बैंकरों के निरुत्साह के चलते ई रुपया बहुप्रचलित न हो सका.   

वैश्विक स्तर पर नकद का प्रयोग घट रहा है. डिजिटल पेमेंट, ई वैलेट, सेंट्रल बैंक करेंसी जैसे विकल्प बढ़ रहे हैं. संसार भर के तकरीबन दो अरब युवा बैंक का खाता नहीं रखते. यह उचित अवसर है सीबीडीसी को प्रचलन में लाने का.  यह विकल्प उनको आकर्षित करने वाला होना चाहिए, जो आज भी नकद खर्चने के अभ्यस्त हैं. नकद खर्चने वाले मध्यमवर्गीय समाज को अपने पैसे और उसकी भुगतान प्रक्रिया में सुरक्षा और सरलता सर्वोपरि होती है. दोनों खूबियों के बावजूद सरकार इस वर्ग में इस बारे में ठोस भरोसा नहीं जगा सकी.

रिजर्व बैंक ने कई बार यहदावा किया कि ई रुपये से लेनदेन में निजता हर कीमत पर पूरी तरह सुरक्षित रहेगी. लेकिन कैसे? यह वे कभी बता नहीं सके. असल में कोई भी भुगतान गुमनाम नहीं रहता, अपने निशान अवश्य छोड़ता है, बस कैश के साथ ऐसा किया जा सकता है. सीबीडीसी के लिए आईडी चाहिए ही चाहिए. खुद रिजर्व बैंक ने कहा था कि ई रुपी के जरिए सरकार वित्तीय तंत्र पर निगरानी रख सकेगी यानी डिजिटल रुपए, उसके लेनदेन की ट्रैकिंग होगी. भारत में प्रस्तावित डाटा प्रोटेक्शन लॉ लागू होगा तो सरकार के पास सभी आंकड़े उजागर रहेंगे. 

ई-रुपया मनी लांड्रिंग तथा अन्य आर्थिक अपराधों पर नकेल लगाकर देश की डिजिटल इकोनॉमी को मजबूत करेगा और भुगतानतंत्र को ज्यादा कुशल बनाएगा. क्रिप्टोकरंसी की बढ़ती लोकप्रियता और खतरे को भी सीबीडीसी से थामा जा सकता है. निःसंदेह भविष्य में यह गेमचेंजर साबित हो सकता है.

– संजय श्रीवास्तव