बड़ी-बड़ी चर्चा के बाद भी स्थिति यथावत, कांग्रेस फिर ढाक के तीन पात

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    कांग्रेस के वर्तमान हालात को देखते हुए यह शेर संदर्भ रखता है- बहुत शोर सुनते थे पहलू में दिल का, जो चीरा तो कतरा-ए-खूं भी न निकला! बड़ी-बड़ी चर्चा के बाद भी कांग्रेस की स्थिति यथावत है जिसे ‘ढाक के तीन पात’ की संज्ञा दी जा सकती है. पार्टी में नई जान फूंकने और 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिहाज से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से कांग्रेस हाईकमांड ने चर्चा की. घाट-घाट का पानी पी चुके प्रशांत किशोर ने भी कांग्रेस महासचिव जैसा पद स्वीकार करने को लेकर अपनी अनुकूलता दिखाई लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है. 

    प्रशांत किशोर उर्फ पीके का कांग्रेस में प्रवेश पार्टी के 2 वरिष्ठ नेताओं की शंका और आपत्तियों की वजह से रुका हुआ है. इसके अलावा जी-23 समूह के नेता भी हाईकमांड के रवैये की वजह से अप्रसन्न हैं. पार्टी की हालत ऐसी है कि एक कदम आगे बढ़ने की सोचती है तो दो कदम पीछे हटने की नौबत आ जाती है. कांग्रेस में निरंतर अविश्वास, संदेह और संवादहीनता का माहौल बना हुआ है.

    2 नेताओं ने एतराज जताया

    जिन 2 नेताओं ने पीके की पार्टी में एंट्री पर एतराज जताया है, उनमें से एक हिंदीभाषी प्रदेश से और दूसरे गैर हिंदी प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. इन नेताओं का कहना है कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस में आने से पहले यह प्रमाणित करने के लिए कहा जाना चाहिए कि वह पार्टी के प्रति कितने समर्पित हैं. उन्हें इस बात पर सहमति देनी चाहिए कि कांग्रेस में आने के बाद वह अन्य किसी पार्टी के लिए कोई राजनीतिक योजना नहीं बनाएंगे और केवल कांग्रेस की चुनावी जीत के लिए ही काम करेंगे. 

    उन्हें अन्य दलों से अपने सभी तरह के अनुबंध भी खत्म करने चाहिए. यहां उल्लेखनीय है कि प्रशांत किशोर एक पेशेवर चुनावी रणनीतिकार हैं तथा विभिन्न पार्टियों और नेताओं को अपनी सेवाएं उपलब्ध कराते रहे हैं, इसलिए उनकी पार्टी निष्ठा को लेकर कैसे आश्वस्त हुआ जा सकता है? इसके पूर्व पीके ने मोदी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम किया है. उनकी संस्था आईपीएसी (इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी) चुनाव रणनीति बनाने का पेशेवर काम करती है.

    जी-23 गुट की नाराजगी

    जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व अन्य नेताओं ने प्रशांत किशोर से चर्चा की और उनका प्रेजेंटेशन देखा तो उस दौरान जी-23 नेताओं को अलग रखा गया. जी-23 में पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री और वर्तमान सांसद शामिल हैं लेकिन इनमें से किसी को भी प्रशांत किशोर द्वारा प्रस्तावित कांग्रेस में सुधार के रोडमैप की चर्चा में नहीं बुलाया गया. 

    जी-23 नेताओं के एक वर्ग ने कहा कि इस तरह के बहिष्कार और अपमान से उन्हें बहुत बुरा लगा. यदि प्रशांत किशोर को पार्टी महासचिव पद दिया गया तो वह पार्टी की लगभग सभी रणनीतियों से अवगत हो जाएंगे और फिर यदि वे किसी अन्य संगठन से संबंध रखते हैं तो यह कांग्रेस के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन होगा.

    असहमति पहले भी रही है

    कांग्रेस में अध्यक्ष का पार्टी नेताओं से विवाद या असहमति का लंबा इतिहास रहा है. महात्मा गांधी की सुभाषचंद्र बोस से सैद्धांतिक मतभेद था. जवाहरलाल नेहरू का राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन और चौधरी चरणसिंह से टकराव हुआ था. इंदिरा गांधी की पार्टी के बुजुर्ग नेताओं से बिल्कुल नहीं पटती थी. इसी वजह से तब उन नेताओं ने संगठन कांग्रेस (कांग्रेस-ओ) बना ली थी जिसमें मोरारजी देसाई, संजीव रेड्डी, एसके पाटिल, निजलिंगप्पा जैसे नेता शामिल थे. 

    तब इंदिरा का साथ के.कामराज व डीपी मिश्रा ने दिया था. कांग्रेस ने कुछ आत्मघाती कदम भी उठाए. असम में हिमंत बिस्वा सरमा व पंजाब में अमरिंदर सिंह की उपेक्षा का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. इसके पूर्व मध्यप्रदेश की सत्ता भी कांग्रेस ने अदूरदर्शिता की वजह से गंवा दी थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं का पार्टी छोड़ना कांग्रेस को महंगा पड़ा. अपना कुनबा संभालने में पार्टी की विफलता सामने आती रही.