पिछले 8 वर्षों में सभी मोर्चों पर विफल कांग्रेस को कितनी ऊर्जा दे पाएंगी सोनिया

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    पानी जब नाक तक आ जाए तब होश में आने से क्या होता है! 2014 के बाद से पिछले 8 वर्षों में कांग्रेस लगातार अपना आधार खोती चली गई लेकिन समय रहते सजगता नहीं बरती गई. पार्टी की हालत समुद्र में फंसे उस जहाज के समान होती चली गई जिसका दिशादर्शक यंत्र बिगड़ गया हो. 

    अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक को संबोधित करते हुए कांग्रेस के जी-23 समूह के साथ ही विपक्षी दलों को अनुकूलता का संकेत दिया. उन्होंने कहा कि वे जी-23 के नेताओं से बात कर उन्हें समायोजित करने के पक्ष में हैं. साथ ही कांग्रेस विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए भी अपना सहयोग देगी. सोनिया गांधी का प्रयास कांग्रेस के भीतर गुटबाजी खत्म करना और विपक्षी दलों के साथ एकता को बढ़ाना है.

    मतभेदों पर हाईकमांड मौन

    विगत वर्षों से कांग्रेस में मतभेद पनपते रहे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. जी-23 गुट के पत्र को अनुशासनहीनता बताने में भी कसर नहीं छोड़ी गई थी. पार्टी में अपनी उपेक्षा की वजह से ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, हिमंत बिस्वा सरमा जैसे नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में चले गए. 

    यदि इन नेताओं से समय रहते चर्चा कर इनकी शिकायतें दूर की जातीं तो इससे लोग कांग्रेस से दूर नहीं जाते. कांग्रेस अपना घर नहीं संभाल पाई. मतभेदों पर कांग्रेस हाईकमांड मौन बना रहा. लगता है, ठोकर लगने के बाद ही पार्टी नेतृत्व को स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ है. 5 राज्यों के चुनाव में पार्टी की पराजय ने कांग्रेस की आंखें खोल दी हैं.

    सबको मनाने की कोशिश

    सोनिया चाहती हैं कि पार्टी में अंदरूनी खींचतान, गुटबाजी तथा पुराने-नए नेताओं की लड़ाई बंद हो. हाल ही में सोनिया ने जी-23 समूह के प्रमुख नेता माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद, भूपेंद्रसिंह हुड्डा, मनीष तिवारी और आनंद शर्मा से मुलाकात की थी तथा संदेश दिया था कि उनके अनुभव का सम्मान करते हुए पार्टी उन्हें अपने साथ बनाए रखना चाहती है. सोनिया ने देख लिया कि गुटबाजी से ही पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. 

    उन्होंने अवश्य ही यह महसूस किया होगा कि पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें तो स्वीकार कर सकते हैं लेकिन राहुल या प्रियंका का नेतृत्व नहीं! वैसे भी प्रियंका यूपी के चुनाव में विफल साबित हुईं. कांग्रेस को युवाओं के जोश के साथ ही बुजुर्ग नेताओं के होश व अनुभव की भी उतनी ही जरूरत है. अपनी ओर से सोनिया ने सबको मनाने की कोशिश की है. एकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि राज्यसभा से कई कांग्रेस नेता निवृत्त हुए हैं जो पार्टी की मजबूती के लिए कार्य कर सकते हैं.

    पिछले चुनावों में प्रचार नहीं कर पाईं

    पिछले चुनावों में अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण सोनिया गांधी प्रचार करने नहीं जा पाई थीं. राहुल और प्रियंका अक्सर मिलने के बावजूद प्रभावी साबित नहीं हो पाए. कांग्रेस में सोनिया की अपरिहार्यता फिर से महसूस की गई, जो सभी को साथ लेकर चल सकती हैं. बीजेपी नेता आलोचना करते हैं कि कांग्रेस गांधी परिवार के बाहर सोच ही नहीं पाती. दूसरी ओर यह भी तथ्य है कि यही परिवार कांग्रेस को बांधे रखने की क्षमता रखता है. 

    बाकी किसी नेता की अखिल भारतीय स्वीकार्यता नहीं है. पार्टी का व्यक्ति केंद्रित होना गलत नहीं है, आखिर बीजेपी की ताकत के पीछे भी तो प्रधानमंत्री मोदी का समर्थ नेतृत्व है. यह बात सही है कि कांग्रेस की आगे की राह कठिन व चुनौतीपूर्ण है लेकिन विपक्ष भी समझने लगा है कि बीजेपी विरोधी सशक्त गठबंधन बनाना हो तो कांग्रेस को अलग रखने से काम नहीं चलेगा.