RSS की तालिबान से तुलना बुद्धिजीवियों की घटिया सोच

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    यह ज्वलंत सत्य है कि मुस्लिम समुदाय विश्व में यदि सबसे अधिक कहीं सुरक्षित है तो केवल भारत में! रूस के चेचन्या में और चीन के झिंझियांग में मुस्लिमों का कितनी कठोरता से दमन किया जाता है, यह बताने की जरूरत नहीं है. कोई भी भारतीय मुस्लिम हरगिज नहीं चाहेगा कि यहां खाड़ी देशों या तालिबान जैसा शरीयत का वैसा सख्त कानून लागू हो जिसमें चोरी करने पर हाथ काट दिए जाते हैं या किसी अन्य बड़े अपराध पर सार्वजनिक रूप से सिर काट दिया जाता है. इतने पर भी कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी प्रचार पाने के इरादे से निहायत बेसिर-पैर की बातें कहने से नहीं चूकते.

    तालिबान की निंदा करना तो दूर, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर अफगानिस्तान में नंगा नाच करने वाले तालिबान से आरएसएस की तुलना करने की जुर्रत कर रहे हैं. ये लोग खुद को धर्मनिरपेक्षता का झंडाबरदार मानते हैं और हिंदुस्तान में रहकर भी हिंदू विरोधी घटिया मानसिकता रखते हैं. उनके लिए धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यही है कि हिंदू जरूरत से ज्यादा उदार, लचीले और सहनशील बने रहें तथा अल्पसंख्यकों को ज्यादा तरजीह दी जाए. कोई मुस्लिम यदि अपने विचारों में संकीर्ण व कट्टर है तो धर्मनिरपेक्षता के तहत उसे सहजता से स्वीकार किया जाए. वह वंदेमातरम का विरोध करता है तो उसे जायज माना जाए.

    जावेद अख्तर का बेतुका बयान

    लेखक-गीतकार जावेद अख्तर को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने आरएसएस की तालिबान से तुलना कर डाली. उन्होंने संघ का नाम लिए बगैर कहा कि तालिबान एक इस्लामी देश बनाना चाहता है और ये लोग एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. जावेद अख्तर जैसी ही सोच कितने ही बुद्धिजीवी कहलाने वाले ‘प्रगतिशील’ लोगों की रही है. कुछ वर्ष पूर्व ऐसे लोगों ने अवार्ड या सम्मान लौटाकर असहिष्णुता के खिलाफ अपना विरोध दर्शाया था. कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर व गोविंद पानसरे की हत्या के विरोध में किसी ने पद्मश्री तो किसी ने साहित्य अकादमी का अवार्ड लौटाया था. मोदी सरकार आने के बाद से सेक्यूलर सोच वाले लेखक आशंकित हो उठे. तब नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी सहित 25 लेखकों ने अकादमी अवार्ड लौटाए थे. पंजाबी लेखिका दिलीप कौर तिवाणा ने पद्मश्री सम्मान लौटाया था. कश्मीर से लाखों हिंदू विस्थापित हुए थे लेकिन किसी बुद्धिजीवी के मुंह से उनके लिए एक बोल भी न फूटा था. उन्हें हिंदुओं के मानवाधिकार से कभी कोई सरोकार नहीं रहा. शायर निदा फाजली, रंगकर्मी नादिरा बब्बर और शबाना आजमी भी सांप्रदायिकता के विरोध के नाम पर अपनी नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. संघ विरोधी सोच रखने वालों का एक वर्ग है जो समय-समय पर भड़ास निकालता रहता है.

    शिवसेना ने फटकार लगाई

    शिवसेना ने खरी-खरी सुनाते हुए कहा कि आरएसएस से तालिबान की तुलना करने में गीतकार जावेद अख्तर ‘पूरी तरह से गलत’ थे. शिवसेना ने सवाल किया कि आप कैसे कह सकते हैं कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा का समर्थन करने वाले तालिबानी मानसिकता के हैं? हिंदुत्व की तालिबान से तुलना करना हिंदू संस्कृति का अपमान है. एक हिंदू बहुल देश होने के बावजूद हमने धर्मनिरपेक्षता का झंडा फहराया. हिंदुत्व के समर्थक केवल यही चाहते हैं कि हिंदुओं को दरकिनार न किया जाए. हिंदुत्व एक संस्कृति है और समुदाय के लोग इस संस्कृति पर हमला करने वालों को रोकने के अधिकार की मांग करते हैं. संघ के दर्शन को तालिबानी कहना पूरी तरह से गलत है.