नेताओं व अधिकारियों की मिलीभगत, काले धन के बेनामी गोदाम

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झारखंड में ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम (Alamgir Alam) के निजी सचिव संजीव कुमार लाल के नौकर के घर से 35 करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी की बरामदगी चौंकाने वाली तो है ही, उतना ही हैरान करने वाला ईडी (ED) का आरोप है कि ऊपर से नीचे तक विभाग के तकरीबन सभी अधिकारी मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल रहे थे। ये दरअसल काले धन के बेनामी गोदाम हैं, जिनमें पता ही नहीं चलता कि पैसा किसका है। उल्लेखनीय है कि इस मामले के तार राज्य के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता वीरेंद्र राम, जो तब ग्रामीण विकास मंत्रालय में डेपुटेशन पर कार्यरत थे, की पिछले वर्ष हुई गिरफ्तारी से जुड़े हैं, जिन्हें हिरासत में लेते वक्त खुद ईडी ने नहीं सोचा होगा कि इससे इतने बड़े खुलासे होंगे।

भ्रष्टाचार का नेटवर्क

जांच में जब यह पता चला कि वीरेंद्र राम कई नेताओं व नौकरशाहों का पैसा निवेश करते थे, तब ईडी की सुई नेताओं की ओर घूमी। पूछताछ के दौरान, उन्होंने राज्य में भ्रष्टाचार के एक जटिल नेटवर्क का खुलासा किया, जिसमें न केवल वह खुद, बल्कि नेताओं व अधिकारियों का एक पूरा तंत्र शामिल था। उन्होंने एक कार्यप्रणाली का भी खुलासा किया, जिसमें खासकर टेंडर प्रक्रिया के दौरान रिश्वत का पैसा विभिन्न चैनलों के माध्यम से भेजा जाता था। अब ग्रामीण विकास मंत्री बेशक शक की सुई अपने सचिव की ओर घूमा रहे हैं, लेकिन उन्हीं के विभाग के मुख्य अभियन्ता की गिरफ्तारी से हुए खुलासे पूरी मशीनरी के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के अंदेशे को गहराते हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में भी कांग्रेसी सांसद धीरज साहू से जुड़े तीन राज्यों के कई ठिकानों पर आयकर विभाग के छापे से तीन सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी बरामद हुई थी।

कांग्रेस के लिए असहज स्थिति

लोकसभा चुनावों के महत्वपूर्ण मोड़ पर इससे कांग्रेस के नेता का नाम जुड़ना खुद कांग्रेस के लिए असहज करने वाला तो है ही, खासकर तब जब राहुल गांधी खुद 7 मई को चुनावी रैली के लिए झारखंड दौरे पर पहुंचे थे। हालांकि बगैर सुबूत के यह नहीं कह सकते कि इस काले धन का किसी खास राजनीतिक दल से कोई संबंध है। लेकिन यह तो साफ है कि नोटबंदी या डिजिटल लेन-देन के बढ़ते प्रसार के बावजूद काले धन के कारोबारियों पर जरा भी असर नहीं पड़ा है। एक नौकर कितना ही भ्रष्ट हो, उसके घर से इतनी बड़ी रकम की बरामदगी हो, तो इस किस्म का भ्रष्टाचार राजनीतिक संरक्षण को ही इंगित करता है, जो शर्मनाक है, और इस बारे में राजनीतिक दलों को ही कोई फैसला लेना होगा क्योंकि संसदीय लोकतंत्र में शुचिता की बहाली के लिए राजनीति में थैलीशाहों का प्रवेश रोकने की दिशा में सामूहिक मंथन बेहद जरूरी है।