Karnataka assembly elections, on which side will the camel sit...

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सत्तारूढ़ बीजेपी और मुख्य विपक्ष कांग्रेस के बीच 2024 के आम चुनाव से पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के रूप में एक और रस्साकशी होगी. पिछले लगभग चार दशक में वहां कोई भी पार्टी लगातार दो चुनाव नहीं जीत सकी है. लेकिन बीजेपी को लगता है कि ओबीसी श्रेणी में से मुस्लिमों का 4 प्रतिशत आरक्षण हटाकर, उसे शक्तिशाली लिंगायत व वोक्कालिंगा समुदायों में विभाजित करके उसने तुरुप का इक्का चला है और उसकी डबल इंजन सरकार के विकास कार्यों के दम पर वह दक्षिण में अपने गढ़ को बचाने में सफल रहेगी. कांग्रेस को लगता है कि बीजेपी की भ्रष्ट राज्य सरकार के विरुद्ध कर्नाटक की जनता ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ही उसके पक्ष में सकारात्मक निर्णय दे दिया था, जिस पर केवल मतदान की मुहर लगना शेष है. 

इन दो महारथियों की लड़ाई के बीच जद(एस) को लगता है कि वह 224 सीटों में से 25-40 सीटें जीतने में सफल रहेगी और इस तरह त्रिशंकु विधानसभा की सूरत में ‘किंग मेकर’ की स्थिति में होगी. इसमें दो राय नहीं हैं कि भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, आरक्षण, बेरोजगारी, महंगाई आदि कर्नाटक चुनाव में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, लेकिन जातिगत समीकरण के आधार पर होने जा रहे विधानसभा चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस या जद(एस) में से किसका दावा सही निकलता है, यह 13 मई को ही मालूम होगा, जब 10 मई को एक चरण में होने जा रहे मतदान का नतीजा सामने आयेगा.

यह विधानसभा चुनाव अगले वर्ष के लोकसभा चुनाव से पहले हो रहा है. इसलिए यह सभी के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन कांग्रेस के लिए कुछ अधिक है; क्योंकि उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का संबंध इसी राज्य के दलित समुदाय से है. 

बसवराज बोम्मई सरकार विरोधी लहर भी महत्वपूर्ण हो गई है. कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि ठेका लेने के लिए सरकारी अधिकारियों को प्रोजेक्ट मूल्य की 40 प्रतिशत रिश्वत देनी पड़ती है. एक बीजेपी विधायक की भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत गिरफ्तारी और उसके घर से करोड़ों रुपयों की बरामदगी, विपक्ष के लिए जबरदस्त चुनावी मसाला है. मुख्यमंत्री बोम्मई को पिछले पायदान पर सरकार बीजेपी का टॉप नेतृत्व कई सप्ताह पहले से ही चुनाव अभियान में मुस्तैदी से सक्रिय हो गया है और केंद्र सरकार के परफॉर्मेंस पर मोदी के नाम पर वोट मांग रहा है. 

मुख्य फोकस मोदी व राहुल, येदियुरप्पा व बोम्मई और सिद्धारमैया व शिवकुमार पर रहेगा, लेकिन शायद यह चुनाव जद(एस) के गौड़ा परिवार के लिए ‘करो-या-मरो’ होगा. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा अपने जीवन के 90वें बसंत में प्रवेश कर गए हैं, इसलिए संभवत: उनके लिए यह अंतिम चुनाव होगा, जिसमें वह सक्रिय ताकत होंगे. गौड़ा परिवार हमेशा ही 25-40 सीट जीतने में कामयाब रहा है और इस वजह से वह अपनी पार्टी के लिए दोनों बीजेपी व कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद हासिल करने में सफल रहा है. अगर जद(एस) की सीटों की संख्या इस बार 20 से कम रह जाती है, तो इससे बीजेपी या कांग्रेस में से किसी एक को स्पष्ट बहुमत मिलने में मदद मिल सकती है और तब जद(एस) के लिए राजनीतिक ताक़त बने रहना कठिन हो जायेगा.

देखना यह है कि जद(एस) का दूसरा प्रमुख वोट बेस- मुस्लिम, जो अपने 10 प्रतिशत मत से लगभग 100 सीटों पर निर्णायक हैं- बदली आरक्षण नीति के बाद कांग्रेस या जद(एस) में से किसकी तरफ झुकता है. कर्नाटक ने 2018 और 2023 के बीच चार चरणों में तीन मुख्यमंत्री देखे. 2018 में बीजेपी सबसे बड़ी एकल पार्टी थी. चुनाव के बाद कांग्रेस ने देवगौड़ा की जद(एस) से हाथ मिला लिया. इसके बावजूद गवर्नर ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. विश्वास मत से दस मिनट पहले येदि को त्यागपत्र देना पड़ा. जद(एस)-कांग्रेस सरकार में देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन 14 माह के भीतर ही उनके 16 विधायक पाला बदल गए और येदियुरप्पा को वापसी का अवसर मिल गया, लेकिन उन्हें भी दो वर्ष बाद अपना पद बोम्मई के लिए छोड़ना पड़ गया. 

– शाहिद ए चौधरी