चुनावों पर मंडरा रहे डीपफेक के बादल

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पिछले दिनों गूगल के एआई चैट टूल ‘जैमिनी’ से पूछा गया। कि नरेंद्र मोदी फासीवादी हैं? इस सवाल के जवाब में इस टूल जैमनी ने कहा, ‘नरेंद्र मोदी भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री हैं और भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं, उन पर ऐसी नीतियां लागू करने का आरोप लगाया है। कुछ जानकारों ने इसे फासीवादी बताया है। ये आरोप कई पहलुओं पर आधारित हैं, जिसमें भाजपा की हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा भी शामिल है।’ लेकिन जब ऐसे ही सवाल अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बारे में पूछा गया तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। ऐसे में गूगल के इस चैट टूल पर पक्षपात का आरोप लगा है। जब भारत सरकार ने इस संबंध में स्पष्टीकरण मांगा तो गूगल से जवाब मिला, “सॉरी, यह प्लेटफार्म अविश्वसनीय है।”

फलस्वरूप, सरकार ने घोषणा कर दी है कि एआई प्लेटफॉर्म्स को देश में ऑपरेट करने के लिए अब राज्य से ‘परमिट’ लेने की आवश्यकता होगी। उल्लेखनीय है कि गूगल ने हाल ही में अपना एआई टूल जैमिनी लां किया है। और उसकी ऐसी अनेक ‘गलतियां’ सामने चुकी हैं, जिससे गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई पर बहु दबाव पड़ रहा है, कुछ लोगों ने तो उनसे इस्तीफा दे की भी मांग की है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि एआ को नियंत्रित करने की जरूरत है, लेकिन अत्यधिन नियंत्रण से हमें ही नुकसान पहुंचेगा।

यह बात यक से कही जा सकती है कि 2024 डीपफेक चुनावों वर्ष होगा, जिसमें दुर्भावनापूर्ण डीपफेक्स भी शामि होंगे। सत्तर से अधिक लोकतांत्रिक देशों में चुनाव ऐ समय हो रहे हैं जब जेनरेटिव एआई सुलभ व चचि निरंतर जटिल होते जा रहे हैं। एक दशक पहले गुजर है और डीपफेक विधानसभा के चुनाव में एक मुख्य योजनाकार ने कहा था कि मतदाता को तैयार किया जाए कि वह अपना वोटर आईडी बीजेपी को भेजें। उसन अनुसार, मोबाइल नंबर से जुड़ा वोटर आईडी राजनीतिक पार्टियों = ‘डबल केवाईसी’ के साथ डाटाबेस बनाने में मदद करेगा।