निशुल्क, मुफ्त और फोकट, शब्द एक ही, भावार्थ अलग-अलग

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नेताओं को शब्दों के चयन के मामले में सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथा अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव (Mohan Yadav) ने राज्य के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में आमसभा के दौरान कहा कि मध्यप्रदेश सरकार की ओर से फोकट का अनाज कितने लोगों को मिल रहा है? सभी लोग हाथ उठाकर बताएं। इस बयान का वीडियो वायरल होने पर कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने इसे आदिवासियों का अपमान बताया। दूसरी ओर बीजेपी प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता आशीष अग्रवाल ने सफाई दी कि मुफ्त निशुल्क और फोकट एक ही शब्द है।
 
जनसाधारण की बोलचाल की भाषा में कई बार फोकट शब्द का भी उपयोग होता है। अग्रवाल ने भूरिया को नासमझ भी कह दिया। यदि किसी भाषा शास्त्री से बात की जाए तो वह बताएगा कि पर्यायवाची शब्दों का भी भावार्थ अलग-अलग होता है। कितनी ही सेवाएं या सुविधाएं निशुल्क होती हैं अर्थात उनके लिए अलग से पैसा नहीं देना पड़ता। जैसे किसी राज्य में 100 यूनिट तक बिजली निशुल्क दी जाती है।
 
इसका मतलब है कि इससे ज्यादा यूनिट का बिल आया तो पैसा देना पड़ेगा। माल्स में बिस्किट या नमकीन के 2 बड़े पैकेट खरीदने पर तीसरा मुफ्त का ऑफर रहता है। आशय यह है कि जरूरत हो या न हो, कंपनी मुफ्त के बहाने एक ही झटके में ज्यादा माल ग्राहक को बेचना चाहती है। 

लोग एक साबुन खरीदने जाते हैं और 3 पर 1 फ्री के चक्कर में 4 साबुन वाला पैक खरीद कर ले आते हैं। यह मार्केटिंग का फंडा है। जहां तक ‘फोकट’ शब्द की बात है वह अपमानजनक है। उससे ऐसा लगता है जैसे किसी भिखमंगे को खैरात बांटी जा रही है। गरीबों को एहसास दिलाया जाता है कि तुम्हारी खरीदकर खाने की हैसियत नहीं है इसलिए हम एहसान करते हुए तुम्हें फोकट अनाज दे रहे हैं। ऐसे बयान से नेता का अहंकार झलकता है।