न उम्र की सीमा है, न काम का है बंधन…

Loading

महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जरूरी या मजबूरी

मनरेगा की वजह से ग्रामीण भारत में बुनियादी ढांचे का भी विकास हुआ। इसके तहत सौ दिन का निश्चित रोजगार मिलने की वजह से गांवों में बहुत सारे उत्पादों की मांग बढ़ी और इससे पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति के पहिये को गतिमान बनाए रखने में मदद मिली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में काम पाने के लिए न्यूनतम उम्र 18 साल है। हालांकि अधिकतम उम्र की कोई सीमा नहीं है। यानी, 80 साल से ज्यादा उम्र के लोग भी मनरेगा में काम कर सकते हैं। दरअसल, मनरेगा में अधिकतम उम्र की सीमा का जिक्र नहीं है। इसका फायदा उठाकर अधिकारी-कर्मचारी और सरपंच भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं। प्रदेश सरकार अपने अधिकारियों-कर्मचारियों को 62 वर्ष की उम्र में वृद्ध मानकर सेवानिवृत्त
कर देती है, लेकिन मनरेगा में मजदूरों की सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं है।

न उम्र की सीमा है, न काम का है बंधन।।। बात महात्मा गांधी नरेगा योजना (मनरेगा) की है। इस योजना में काम पाने के लिए न्यूनतम उम्र तो तय है, लेकिन अधिकतम की कोई सीमा नहीं। न्यूनतम 18 साल है, लेकिन अधिकतम में 80 से ऊपर के बुजुर्ग भी काम कर सकते हैं। इसमें नियमों का दोहरापन नजर आता है। दरअसल, 60 साल की उम्र में अफसर-कर्मचारी रिटायर हो जाते हैं। लेकिन महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में मजदूरों की सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं है। कई प्रदेश में मजदूर 90 साल की आयु में काम कर रहे हैं।

मनरेगा कानून में कार्य के इच्छुक श्रमिक की न्यूनतम आयु की सीमा तय की गई है, लेकिन अधिकतम आयु का जिक्र नहीं है। इसका फायदा उठाकर अधिकारी-कर्मचारी और सरपंच भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं। इसी का फायदा उठाकर उम्रदराज लोगों को भी मनरेगा का मजदूर दिखाया जा रहा है। ऐसे ही 15,088 मजदूर 90 साल की आयु में काम कर रहे हैं जबकि तीन लाख से ज्यादा मजदूर 61 से 80 साल के हैं। 

ये आंकड़े गले नहीं उतर रहे हैं परंतु मनरेगा की वेबसाइट और अधिकारियों का दावा है कि योजना में इतने उम्रदराज मजदूर भी कार्यरत हैं। जीवन के आखिरी पड़ाव में पहुंचने वाले इन मजदूरों को सिर्फ पानी पिलाने और कायों की देखरेख करने की मजदूरी दी जाती है। सरकार ने मनरेगा में काम करने वाले और काम मांगने वालों की उम्र के आधार पर अलग अलग श्रेणियां बना रखी हैं। इसकी शुरुआत 18 से लेकर 80 वर्ष व उससे अधिक तक मानी गई है।

पहली श्रेणी 18 से 30 वर्ष तक, दूसरी श्रेणी 31 से 40 वर्ष तक, तीसरी श्रेणी 41 से 50 वर्ष तक, चौथी श्रेणी 51 से 60 वर्ष तक, पांचवीं श्रेणी 61 से 80 वर्ष तक और अंतिम श्रेणी 80 वर्ष से अधिक आयु वाले श्रमिकों की है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय लोकसभा को सूचित किया कि 2022-23 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना सूची से 15।18 करोड़ श्रमिकों के नाम हटा दिए गए, जबकि पिछले साल 2021-22 में 1।49 करोड़ श्रमिकों के नाम हटाए गए थे। इसका कारण श्रमिकों की मौत से लेकर फर्जी जॉब कार्ड तक है।
वर्ष में 100 दिन काम

किसी एमजीएनआरईजीएस वर्कर को सूची से हटाने का मूल रूप से मतलब यह है कि वह व्यक्ति काम करने के लिए अयोग्य है क्योंकि वह अब ग्रामीण नौकरी कार्यक्रम के तहत पंजीकृत नहीं है। योजना के तहत प्रत्येक पात्र परिवार को एक जॉब कार्ड दिया जाता है, जो उसके इच्छुक वयस्क सदस्यों को वर्ष में 100 दिन के काम का अधिकार देता है। मंत्रालय ने यह जानकारी दी कि इसके लिए मॉनीटरिंग में प्रयोग की जाने वाली टेक्नॉलजी के कारण होने वाली सिस्टम त्रुटि को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। 

सरकार ने एमजीएनआरईजीएस श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय मोबाइल मॉनीटरिंग सिस्टम के माध्यम से ऑनलाइन उपस्थिति अनिवार्य कर दी थी। श्रमिकों और एक्टिविस्ट्स के व्यापक विरोध के बावजूद यह आधार- आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) पर भी जोर देता है ताकि मजदूरी के समय पर भुगतान को सुनिश्चित किया जा सके। एबीपीएस कार्यान्वयन की समय सीमा 31 अगस्त 2023 तक बढ़ा दी गई है। मनरेगा एक्टिविस्ट्स का मानना है कि कई मामलों में ग्रामीणों के नाम हटा दिए गए होंगे क्योंकि उनका जॉब कार्ड एबीपीएस से जुड़ा नहीं रहा होगा।