पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नेपाल का प्रधानमंत्री बनतअे ही उनके देश का झुकाव फिर से चीन की ओर बढ़ना स्वाभाविक है. प्रचंड सीपीएन-माओइस्ट सेंटर के नेता हैं जिनकी चीन की कम्युनिस्ट सरकार से हमेशा से करीबी रही है. उत्तरी पड़ोसी देश नेपाल में चीन का प्रभाव और दखल बढ़ना भारत के लिए टेंशन देनेवाली बात है. तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने प्रचंड फिर अपने देश के विकास कार्यों के लिए चीन के सामने हाथ फैलाने लगे हैं.
प्रचंड ने चीन की सहायता से बने पोखरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उद्घाटन किया जो कि चीन के मुताबिक उसके बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव का हिस्सा है. प्रचंड ने रेल प्रोजेक्ट में भी चीन की मदद मांगी है. चीनी राजदूत ने कहा कि पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा चीन और नेपाल दोनों देशों के लिए अहम है. आनेवाले वर्षों में चीन से आनेवाले पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी. नेपाल और चीन में पहले भी निकटता रही है.
2016 में नेपाल और चीन के बीच 215.96 मिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. सभी ओर जमीन से घिरे नेपाल में हवाई सेवा काफी महत्व रखती है. चीन के सहयोग से निर्मित पोखरा नेपाल का तीसरा अंतरराष्ट्रीय विमानतल बन गया है. भारत के तमाम पड़ोसी देशों को चीन अपने चंगल में फंसा रहा है. पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव पर शिकंजा कसने के बाद वह बांग्लादेश को भी कर्ज के जाल में फंसाने की तैयारी में है. यह चीन का आर्थिक साम्राज्यवाद है जिसके तहत वह एशियाई देशों को आर्थिक गुलामी की जंजीरों में जकड़ता जा रहा है.
चीन ज्यादा ब्याज दर पर कर्ज देता है और कर्जदार देशों की संपत्ति लंबी लीज पर हथिया लेता है. पाकिस्तान के ग्वाडर और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा है. नेपाल विगत कुछ वर्षों में चीन के इशारे पर चलकर भारत के साथ तनाव बढ़ाता रहा है. केपी शर्मा ओली के पीएम रहते नेपाल ने भारत के लिबुलेख, कालापानी और लिपियाधुरा जैसे इलाकों को अपने नक्शे में दिखाया था और इन क्षेत्रों के नेपाल में होने का प्रस्ताव भी नेपाली संसद में पारित किया गया था. नेपाल के नेतृत्व को ध्यान रखना चाहिए कि प्राचीन काल से भारत और नेपाल के बीच अत्यंत निकटता रही है.
लगभग 70 लाख नेपाली नागरिक भारत में रहते हैं और करीब 6 लाख भारतीय नेपाल में निवास करते हैं. भारतीय सेना व अर्धसैनिक संगठनों में बहादुर गोरखा सैनिकों का समावेश है सेना की 7 गोरखा रेजिमेंटों में 50,000 नेपाली सेवारत हैं. अंग्रेजों ने नेपाल को एक सीमावर्ती या बफर स्टेट के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन आजादी के बाद 1950 के दशक में भारत और नेपाल ने शांति और दोस्ती का समझौता किया जो दोनों देशों के नागरिकों को एक-दूसरे की भौगोलिक सीमाओं से परे मुक्त आवाजाही की सुविधा प्रदान करता है. इसमें पासपोर्ट नहीं लगता. जब नेपाल में तानाशाही का दमनचक्र चल रहा था तब वहां के कितने ही लोकतंत्र समर्थक नेताओं ने भारत आकर शरण ली थी. इतने पर भी नेपाल में कुछ तत्व ऐसे हैं जो चीन को अपना हितैषी मानने की भूल करते हैं.
नेपाली माओवादियों और भारतीय नक्सलियों के बीच मजबूत साठगाठ भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन गई थी. प्रचंड जब पिछली बार नेपाल के पीएम बने थे तब उन्होंने 20,000 पूर्व माओवादियों को नेपाल की सेना में शामिल करने की पहल की थी. नेपाल को चीन की चाल से बचते हुए भारत के साथ अभिन्न संबंध रखने चाहिए. वह अनाज, पेट्रोल-डीजल तथा अन्य बहुत सी चीजों के लिए भारत पर ही निर्भर है. लिपुलेख पर भारत के दावे को चुनौती देने का प्रश्न ही नहीं उठता. यह दर्श सीमा व्यापार के लिए स्वीकृत बिंदु है और कैलास-मानसरोवर यात्रा का मार्ग भी यहीं से जाता है.