Now scientists are also accepting the power of Gangajal

    Loading

    हिंदू धर्म में गंगाजल परम पवित्र और व्याधियों व पाप का नाश करनेवाला माना गया है. विश्व में एक मात्र गंगा ही ऐसी नदी है जिसका जल कभी बासी नहीं होता. इसे लोग प्रयागराज या हरिद्वार से गंगाजलि में भरकर ले जाते हैं और घरों में रखते हैं. मरते समय व्यक्ति के मुंह में तुलसी और गंगाजल डालने की पुरानी परंपरा चली आ रही है. किसी पर गंगाजल छिड़क दो तो वह पवित्र हो जाता है. यह सभी सनातन मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि बादशाह अकबर जहां भी जाता था, शोरे से ठंडा किया हुआ गंगाजल पीता था. गंगाजल की महत्ता को इतने वर्षों बाद वैज्ञानिकों ने पहचाना है. उनका निष्कर्ष है कि गंगाजल कई तरह के संक्रमण (इन्फेक्शन) के इलाज में रामबाण साबित हो सकता है और यह कई एंटीबायोटिक दवाओं से भी ज्यादा कारगर या असरदायी है. आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के माइक्रोबायोलाजी डिपार्टमेंट ने 4 वर्ष पहले वाराणसी के अलग-अलग घाटों से गंगाजल का सैम्पल लेकर रिसर्च शुरू की. गंगाजल में ऐसे अच्छे बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता चला जो ड्रग-रेसिस्टेंट इन्फेक्शन का इलाज कर सकता है अर्थात दवाओं से ठीक न हो पा रहे संक्रमण को गंगाजल से ठीक किया जा सकता है. इस बैक्टीरिया को वैज्ञानिकों ने सूडोमोनस एरूजिनोसा नाम दिया है. रिसर्च टीम की सदस्य डा. निशा राठौर के अनुसार गंगाजल में मिला यह नया बैक्टीरिया इंसानों के इम्यून सिस्टम के लिए नुकसानदायक भी नहीं है जबकि कई एंटीबायोटिक दवाइयां शरीर के अच्छे बैक्टीरिया को भी मार देती हैं.

    गंगाजल ले सकता है एंटीबायोटिक की जगह

    कई एंटीबायोटिक यूरीन इन्फेक्शन, गंभीर बर्न इंज्योरी, सर्जरी के दौरान लगे कट्स, निमोनिया, फेफड़ों के संक्रमण, डायबिटीज जैसे संक्रमण में अपना असर खो रहे हैं जबकि गंगाजल उनके इलाज में कारगर साबित हो सकता है. यह दावा एम्स के मायक्रोबायलॉजी विभाग की प्रमुख डा. रमा चौधरी ने किया. उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में कई एंटीबायोटिक अपना असर खो चुके हैं और रोग को खत्म नहीं कर पाते. कुछ सीमित एंटीबायोटिक ही कारगर है. इसलिए इलाज ज्यादा खर्चीला बनता जा रहा है. हम उम्मीद करते हैं कि गंगाजल में पाया जानेवाला नया बैक्टीरिया ऐसे संक्रमण के इलाज में बहुत उपयोगी साबित होगा.

    गंगा की महिमा

    प्राचीन ऋषि-मुनि भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे. गंगाजल का लाभ आम लोगों तक आसानी से पहुंचाने के लिए उन्होंने इसे धर्म से जोड़ दिया. यह बताया गया कि गंगा सुरसरी (देवताओं की नदी) है. इसे स्वर्ग से लाने के लिए राजा भागीरथ ने कठोर तमस्या की थी. गंगा विष्णु भगवान के चरणों से निकली, शिव की जटाओं में घूमती रहीं और फिर भगीरथ के पीछे-पीछे पृथ्वी तल पर आई. भीष्म को गंगापुत्र कहा गया है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा जाता है कि हिमालय पर ग्लेशियर के रूप में अथाह जलराशि थी जिसे पीढि़यों के प्रयास से भूतल पर लाया गया. इस लिहाज से यह उस जमाने की मैन मेड कैनल रही होगी. गंगा-यमुना के जल की सिंचाई से उत्तर भारत में फसलों की भारी पैदावार होती है. गंगा अपने साथ हिमालय पर्वत से अनेक वनस्पति, जड़ीबूटी व खनिजों से होकर उनके औषधि गुणों को साथ लाती है. ऐसे गुण दुनिया की किसी भी नदी के जल में नहीं पाए जाते. अब तो डाक्टर और वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं कि गंगा तेरा पानी अमृत! इतने प्रदूषण और गंगा सफाई अभियान की विफलता के बावजूद गंगा जल ने अपना गुण नहीं छोड़ा और आज भी उसकी महत्ता बनी हुई है. यदि सचमुच गंगा को प्रदूषण मुक्त कर दिया जाए तो वह कितनी उपयोगी हो सकती है.