o-what-extent-have-our-morals-fallen-supreme-court-on-goa-congress-mlas-joining-bjp

    Loading

    राजनीति से सिद्धांतों और आदर्शों का लोप हो गया है तथा नेता मौकापरस्त व स्वार्थी हो चले हैं. पार्टी निष्ठा नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई है. मतलब के लिए वे कब पाला बदल लेंगे, इसका कोई ठिकाना नहीं है. बेशर्मी के साथ दलबदल करनेवाले नेता अपने क्षेत्र की जनता को सबसे बड़ा धोखा देते हैं जिसने उन्हें एक साल पार्टी का उम्मीदवार मानकर चुना था. ऐसे बेपेंदी के लोटे किसी भी दल के प्रति वफादार नहीं होते बल्कि बिकाऊ होते हैं. इनकी मौजूदगी लोकतंत्र का मखौल उड़ाती है. छोटी विधानसभाओं में धन या सत्ता लोलुप विधायक ऐसा ही खेल करते हैं. वे एक पार्टी की टिकट पर चुने जाते हैं और अपना उल्लू सीधा करने के लिए ऐसी दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लेते हैं जिसके वे कट्टर आलोचक रहे हैं. ऐसा लगता है कि दलबदल विरोधी कानून पूरी तरह विफल हो गया है.

    गोवा में 9 कांग्रेसी विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के मामले में तीखी टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अब हमारी नैतिकता किस हद तक गिर गई है. न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ गोवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गिरीश चोडनकर द्वारा 2019 में कांग्रेस पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के 12 विधायकों के कथित रूप से बीजेपी में शामिल होने के बारे में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. चोडनकर के वकील ने कोर्ट से दलबदल मामले से जुड़े बड़े कानूनी प्रश्न पर विचार की मांग की.

    इस पर सुप्रीम कोर्ट बेंच ने यह कहते हुए कि कोई जल्दबाजी नहीं है, इस मामले को अगले वर्ष सूचीबद्ध करने को कहा ताकि इन कानूनी सवालों पर विचार किया जा सके. गोवा विधानसभा के 2017 में हुए चुनाव के बाद 2019 में कांग्रेस को 12 विधायकों के पार्टी बदलकर बीजेपी में शामिल होने को स्पीकर ने पार्टी का विलय मानकर मान्यता दे दी थी. स्पीकर के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन वहां भी स्पीकर का फैसला सही माना गया. इसे याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

    राजस्थान का मामला भी पार्टी अनुशासन की धज्जियां उड़ाने वाला है. वहां कांग्रेस के 91 विधायकों ने पार्टी निष्ठा को ताक पर रखकर व्यक्ति निष्ठा को तरजीह दी. इस तरह उन्होंने पार्टी हाईकमांड को तीखे तेवर दिखाए थे. कांग्रेस हाईकमांड के पर्यवेक्षक के रूप में गत 25 सितंबर को मल्लिकार्जुन खडगे और अजय माकन जयपुर पहुंचे थे. वे कांग्रेस विधायक दल की बैठक कर मुख्यमंत्री गहलोत के स्थान पर नया नेता निर्वाचित कराने का इरादा रखते थे. तभी गहलोत समर्थक 91 विधायकों ने समानांतर बैठक बुलाकर विधानसभा अध्यक्ष को अपने सामूहिक इस्तीफे सौंपे थे. इस मामले में विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड ने जनहित याचिका दायर की जिसपर राजस्थान हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और सचिव से जवाब तलब किया और 2 सप्ताह में जवाब मांगा है.

    यह बात अलग है कि गहलोत को उनकी राजनीतिक ताकत की वजह से कांग्रेस हाईकमांड राजस्थान से हटा नहीं सका. वे कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते थे. बाद में हुए चुनाव में खडगे कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए गए. इतने पर भी गहलोत समर्थक 91 कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष को सामूहिक इस्तीफे सौंपकर पार्टी हाईकमांड को सीधी चुनौती दी थी जिसे लेकर हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस भेजा है.