Navabharat Editorial, Lok Sabha Elections 2024, Narendra Modi, BJP

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– लोकमित्र गौतम

प्रधानमंत्री मोदी (PM Narendra Modi) के लिए जरूरी नहीं है कि भाजपा (BJP) औपचारिक रूप से उन्हें अगले प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करे,वह बिना घोषित पीएम फेस ही नहीं सब कुछ हैं।  पिछले दो लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) की तरह इस बार भी प्रचार की कमान प्रधानमंत्री मोदी के हाथों में ही है और उन्होंने राममंदिर की औपचारिक प्राण प्रतिष्ठा के बाद से ही चुनाव प्रचार की शुरुआत कर दी है।  पिछले एक पखवाड़े में करीब आधा दर्जन जनसभाओं को संबोधित करते हुए उन्होंने आगामी चुनावों का एक मनोवैज्ञानिक नैरेटिव भी गढ़ दिया है, ‘अब की बार चार सौ के पार’! भले कुछ लोग कह रहे हों कि यह तो महज नारा है, इससे क्या होता है? लेकिन इस नारे के अपने मनोवैज्ञानिक अर्थ भी हैं। 

आम लोगों से लेकर राजनीतिक पंडितों तक को इस नारे ‘अबकी बार चार सौ पार’ ने चर्चा करने के लिए बाध्य कर दिया है, इस तरह के आक्रामक नारों की अपनी कुछ ताकत होती है।  कोई भी लड़ाई वास्तविक रूप में जीतने के पहले मनोवैज्ञानिक रूप से जीतनी जरूरी है।  यह उसी मनोवैज्ञानिक जंग का मोर्चा है।  

विपक्ष पर भारी बीजेपी

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लगातार तीसरी बार विपक्ष के विरूद्ध एक अपरहैंड पोजीशन ले चुकी है।  यह उसी तरह विजयी नैरेटिव साबित हो सकता है, जैसा कि 2014 में ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और 2019 में ‘एक बार फिर मोदी सरकार’ साबित हुए थे।  साल 2014 में भाजपा ने सिर्फ सरकार बनाने के लिए बहुमत ही नहीं जुटाया था बल्कि 30 वर्षों से चली आ रही खंडित जनादेश की परम्परा को भी ध्वस्त कर दिया था।  1984 में कांग्रेस ने 404 सीटें हासिल की थी।  2014 में भाजपा ने जहां अकेले दम पर 282 सीटें, वहीँ सहयोगियों की मदद से एनडीए ने 336 जीती थीं।  2014 भाजपा ने 30 फीसदी से ज्यादा मत प्रतिशत और 17 करोड़ से ज्यादा वोट हासिल करके सही मायनों में कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरी थी। 

भाजपा को इस साल भाजपा को अपने सहयोगियों के भी समर्थन की जरूरत नहीं थी।  लेकिन भाजपा ने गठबंधन का धर्म निभाते हुए सभी सहयोगी पार्टियों को सत्ता में हिस्सेदार बनाया था।  2019 में एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी के व्यक्तित्व के चलते भाजपा न सिर्फ बहुमत हासिल किया बल्कि 2014 से भी 23 सीटें ज्यादा लाते हुए 303 सीटें अकेली जीतीं और अब तक का सबसे ज्यादा बहुमत करीब 38 फीसदी मत और 22 करोड़ 70 लाख वोट हासिल किए। 

गणित के नजरिये से सोचने पर लगता है कि भाजपा आखिर चार सौ पार सीटें कहां से लायेगी? क्योंकि उत्तर भारत में जहां उसका प्रभाव है, वह अपने अधिकतम या कहें उच्च प्रदर्शन पर काबिज़ है, गुजरात और राजस्थान जैसे प्रदेशों में उसकी सभी लोकसभा सीटें हैं और उत्तर प्रदेश में 80 फीसदी से ज़्यादा।  जबकि बिहार में फिर से लौट आये पुराने सहयोगी नीतीश कुमार के साथ मिलकर उनकी 40 में 39 सीटें पिछले लोकसभा में रही है। यहां तक कि बंगाल जैसे प्रदेश में जहां लंबे समय तक भाजपा की दाल नहीं गली, वहां भी उसने पिछले चुनाव में 18 सीटें जीती थीं। 

क्या दक्षिण में सीटें जीतेगी

इसी तरह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा अधिकतम सीटें हासिल कर चुकी हैं।  फिर आखिरकार उसके चार सौ पार के नारे के लिए नई सीटें कहां से आयेगी? जाहिर है विंध्य पार का राजनीतिक भूगोल इसके निशाने मे आता है, जहां कि 132 सीटों में से करीब 82 सीटों पर भाजपा ने कभी खाता नहीं खोला और 74 सीटों में कभी दूसरे नंबर पर नहीं रही।  क्या भाजपा इस बार केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से ज्यादा सीटें जीतकर लाएगी?