सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक अयोध्या में राम मंदिर

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नौशाबा परवीन

चमोली के नंदप्रयाग में रहने वाले 60 वर्षीय अयाजुद्दीन सिद्दीकी का परिवार पीढ़ियों से स्थानीय रामलीला के मंचन में उल्लेखनीय योगदान दे रहा है. नंदप्रयाग में अकेला सिद्दीकी परिवार ही नहीं बल्कि 10-12 मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से रामकथा से जुड़े हैं. नंदप्रयाग रामलीला समिति के अध्यक्ष सौरभ वैष्णव इसकी पुष्टि करते हुए वन अधिकारी मुमताज फारूकी को याद करते हैं जो उनके पिता के साथ लगभग 30 वर्ष तक रामलीला से जुड़े रहे. फारूकी का पिछले साल निधन हो गया

इमामे हिंद राम

कश्मीर से कन्याकुमारी तक ऐसी दास्तानें बिखरी मिल जाएंगी. दरअसल अयोध्या में बाबरी मस्जिद बचाने के लंबे अदालती संघर्ष के बावजूद मुस्लिमों ने राम का विरोध कभी नहीं किया. उस समय भी नहीं जब पैगंबर मोहम्मद के संदर्भ में भड़काऊ व आपत्तिजनक बातें कही गईं. मुस्लिमों ने कभी राम की शान में गुस्ताखी नहीं की. इसका एक खास कारण है. इस्लामिक आस्था के अनुसार राम, कृष्ण, गौतम बुद्ध व महावीर वे पैगंबर हैं जो भारत में आए और उन पर मुहम्मद जितना ही ईमान लाना है. इसलिए कवि-चिंतक अल्लामा इकबाल ने राम को ‘इमामे . हिंद’, ‘जिंदगी की रूह’ और ‘रूहानियत की शान’ कहा.

भाईचारे का अवसर

अयोध्या में मंदिरों से जुड़े कार्यों में मुस्लिमों की भागीदारी व दिलचस्पी हमेशा से रही है. अयोध्या में खड़ाऊं आदि बनाने के काम में मुस्लिम सदियों से लगे हुए हैं. अब कुम्हारों, दस्तकारों व व्यापारियों के लिए अवसरों में वृद्धि हुई है. डिजाइनर दीये बनाये जा रहे हैं. राम दरबार व मंदिर मॉडल, राम की

अयोध्या में मंदिरों से जुड़े कार्यों में मुस्लिमों की भागीदारी व दिलचस्पी हमेशा से रही है. अयोध्या में खड़ाऊं आदि बनाने के काम में मुस्लिम सदियों से लगे हुए हैं. अब राम मंदिर के निर्माण के बाद कुम्हारों, दस्तकारों व व्यापारियों के लिए अवसरों में वृद्धि हुई है. मूर्तियों, मंदिर के गोल्ड-फ्रेम फोटो, चांदी व सोने के राम सिक्कों की मांग बहुत बढ़ गई है, अमरोहा के एक मुस्लिम परिवार ने टोपियां तैयार की हैं जिन पर ‘जय श्री राम’ लिखा है. इन्हें श्रद्धालु प्राण प्रतिष्ठा के दिन पहनेंगे.

रामोत्सव से मुस्लिम भी उत्साहित

आज 22 जनवरी, 2024 को जब अयोध्या के रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो शेष देशवासियों की तरह मुस्लिमों में भी उत्साह व उमंग है. वह अपने स्तर पर इसका हिस्सा बनने का प्रयास भी कर रहे हैं. मसलन अयोध्या के राम मंदिर म्यूजियम के लिए मुस्लिम दस्तकारों ने दुनिया की सबसे लंबी बांसुरी बनाई है जिसे बजाया जा सकता है. 21.5 फीट लंबी वांसुरी को असम से लाए गए बांस से पीलीभीत की हिना परवीन, शमशाद अहमद व अरमान नबी ने लगभग 10 दिन में तैयार किया. इस बांसुरी पर राम के साथ कृष्ण की तस्वीरों की भी नक्काशी की गई है. तीनों दस्तकारों का परिवार 125 वर्षों से बांसुरी बनाने के काम में लगा है.

इसी तरह जहां ताला नगरी अलीगढ़ के दस्तकारों ने अयोध्या के लिए 400 किलो का ताला तैयार किया है. वहीं अपने चूड़ी उद्योग के लिए विख्यात फिरोजाबाद के दस्तकारों ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए ग्लास के 10,000 सुंदर ब्रेसलेट भेंट किए. इन पर ‘जय श्रीराम’ एंग्रेव किया हुआ है. इन्हें बनाने में शामिल दस्तकार मोहम्मद इमरान का कहना है, ‘यह पहली बार है जब हमने बिना जोड़ के ब्रेसलेट तैयार किए हैं, हर कड़े पर साइड में सोना मिश्रित कोटिंग है.’ राम मंदिर के हॉल व गैलरी में भदोही के मुस्लिम कारीगरों द्वारा बनाए कालीन बिछेंगे. 118 दरवाजों पर नक्काशी जैसे कामों में हिंदू कारीगरों के साथ मुस्लिम कारीगर भी श्रद्धा से लगे हुए हैं.