कोरोना के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध, विश्व अर्थव्यवस्था पर बुरा असर

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    महामारी और युद्ध ऐसी आपदाएं हैं जो समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख देती हैं. कोरोना संकट से महाशक्ति कहलाने वाले राष्ट्र भी बुरी तरह हिल गए थे. यह संकट टला ही था कि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हो गया. 47 दिनों से चल रही इस जंग की वजह से दुनिया भर के देशों की इकोनॉमी बुरी तरह प्रभावित हो रही है. 

    विश्व बैंक ने अपने नवीनतम आर्थिक अपडेट में अनुमानित आंकड़े पेश करते हुए बताया कि इस युद्ध की वजह से किस देश को कितना नुकसान उठाना पड़ा और उसकी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कितनी गिरावट आ सकती है. विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को रूस-यूक्रेन युद्ध का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. इससे वैश्विक मंदी, बढ़ती महंगाई, गरीबी में वृद्धि और कर्ज का बोझ बढ़ने जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं. यूरोप और मध्य एशिया की अर्थव्यवस्था में इस वर्ष 4.1 प्रतिशत गिरावट आने के आसार हैं.

    भारत में महंगाई उच्चतम स्तर पर

    भारतीय रिजर्व बैंक को आशंका है कि इस समय देखी जा रही महंगाई और ज्यादा बढ़ेगी. बिजली, पेट्रोल-डीजल व गैस मूल्यवृद्धि का असर परिवहन खर्च और बाकी वस्तुओं के दामों पर पड़ा है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अर्थात खुदरा महंगाई दर में 6.35 प्रतिशत की दर से वृद्धि का अनुमान है. रिजर्व बैंक ने जीडीपी के अनुमान को 7.8 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया है. 

    देश में लाखों बचतकर्ता लंबे समय से नकारात्मक ब्याज दर की त्रासदी भोग रहे हैं. पिछले 12 में से 6 महीने उपभोक्ता मूल्य महंगाई लगभग 6 प्रतिशत के आसपास रही. महंगाई दर के 7 प्रतिशत पहुंचने की आशंका वास्तविक प्रतीत होती है. 10 वर्ष के बॉन्ड पर मुनाफा 20 बेसिस पॉइंट से घटकर 7.13 फीसदी रह गया है.

    खपत और निवेश में सुस्ती

    रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के मुताबिक निजी खपत और निश्चित निवेश अब भी सुस्त है. इन्हीं के आधार पर घरेलू मांग तय होती है. इनमें महामारी के पूर्व स्तरों से केवल 1.2 प्रतिशत और 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. मौद्रिक नीति समिति के अनुसार विश्व स्तर पर जिन्सों की कीमतों का बढ़ना, सप्लाई चेन में लंबे समय तक रुकावटें आना, व्यापार और पूंजी प्रवाह में अव्यवस्था तथा वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव की आशंका बड़े पैमाने पर महंगाई का जोखिम बढ़ा रही है. 

    इससे विकास के लिए नकारात्मक जोखिम उत्पन्न हो रहा है. यदि महंगाई नियंत्रित नहीं की जा सकी तो यह अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास, उत्पादकता, निवेश के माहौल और अंतत: रोजगार के लिए सबसे बड़ा खतरा होगी. महंगाई से गरीब और मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. लोग न तो पर्याप्त मात्रा में खरीद रहे हैं और न ही पर्याप्त उपभोग कर रहे हैं. निजी खपत को विकास का प्रमुख इंजन माना जाता है.

    वर्तमान स्थिति चिंतनीय है

    इस समय प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से लोग गरीब हुए हैं. उनकी आय घटी है. खर्च करने की क्षमता में गिरावट आई है. ईंधन और जीएसटी दर बढ़ने और ऊंची कीमतों से लोग भयग्रस्त हैं. कारोबार बंद होने से नुकसान हुआ, जिसकी अभी तक रिकवरी नहीं हो पाई है. 2021-22 की छमाही में कुल जीडीपी 68,11,471 करोड़ रुपए थी, जबकि 2019-20 में यह 71,28,238 करोड़ रु. थी. 

    महामारी के पूर्व की स्थिति के उत्पादन स्तर तक पहुंचने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है. निचले स्तर की आधी आबादी में मांग बढ़ाने के उपाय करने होंगे. गरीबों को नकद सहायता तथा सूक्ष्म व लघु उद्यमियों को वित्तीय मदद देने की आवश्यकता है.