क्या NOTA को प्रत्याशी माना जाए

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कुछ मुद्दे रोचक के साथ ही तर्कसंगत भी होते हैं। मोटिवेशनल स्पीकर तथा कई पुस्तकों के लेखक शिव खेड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि ‘नोटा’ को भी प्रत्याशी माना जाए तथा निर्विरोध चुनाव पर रोक लगाएं। इस याचिका में सूरत लोकसभा चुनाव का उदाहरण दिया गया व मांग की गई कि किसी भी प्रत्याशी के खिलाफ यदि दूसरा कोई प्रत्याशी पर्चा दाखिल नहीं करता या पर्चा वापस ले लेता है तो भी इसे निर्विरोध घोषित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि ईवीएम में नोटा का भी विकल्प है। नोटा का अर्थ है कि इन उम्मीदवारों में से कोई भी पसंद नहीं है। कितने ही नागरिक नोटा का बटन दबाते हैं।  

शिव खेड़ा की याचिका में कहा गया कि अगर नोटा को सर्वाधिक वोट मिले तो उस सीट पर दोबारा चनाव कराया जाना चाहिए। अगर किसी प्रत्याशी को नोटा से भी कम वोट मिलते हैं तो ऐसे अत्यल्प वोट पाने वाले व्यक्ति पर 5 वर्ष तक किसी भी चुनाव लड़ने पर रोक लगानी चाहिए। अदालत से मांग की गई कि ‘नोटा’ को भी एक काल्पनिक प्रत्याशी के तौर पर प्रचारित किया जाए।  

खेड़ा के वकील गोपाल शंकर नारायणन ने सूरत सीट पर बीजेपी प्रत्याशी के निर्विरोध जीतने का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां कोई कैंडिडेट ही नहीं बचा। ऐसे में सारे वोट एक ही उम्मीदवार को जाने थे। इस चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस भेजकर उससे जवाब मांगा है कि यदि नोटा को मेजारिटी मिल जाती है तो क्या उस सीट पर फिर से चुनाव कराया जाए?