निजी क्षेत्र की मौसम अनुमान कंपनी ‘स्काईमेट’ ने केंद्र सरकार के भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की मानसून आगमन संबंधी घोषणा की विफलता की तीखी आलोचना की. स्काईमेट ने कहा कि भारतीय मौसम विभाग ने सभी मानदंडों का पालन किए बगैर जल्दबाजी में मानसून के आगमन की घोषणा कर डाली. मानसून अभी तक केरल के तट पर नहीं पहुंचा है. ज्यादातर स्थानों पर सूर्य की रोशनी तेज थी और मानसून आने का कोई आभास नहीं था. 30 मई को 14 स्टेशनों में से 7 स्टेशनों ने शून्य वर्षा दर्ज की तथा 2 स्टेशनों ने 1 मिलीमीटर से भी कम वर्षा दर्ज की. स्काईमेट ने कहा कि आईएमडी ने केरल तट पर मानसून के दस्तक देने की घोषणा विगत 2 दिनों के दौरान हवा की रफ्तार तथा ओएलआर (आउटगोइंग लांगवेव रेडिएशन) के आधार पर की, जबकि मानसून के लिहाज से बारिश सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है. इस तरह आंकड़े बताते हैं कि बारिश संबंधी मानदंड का पालन नहीं किया गया और इसके बगैर ही मानसून के आगमन की घोषणा कर दी गई.
मानकों का सरासर उल्लंघन
स्काईमेट ने कहा कि आईएमडी की मानसून आने की घोषणा केवल 1 दिन अर्थात 29 मई के आंकड़ों के आधार पर की गई थी. केवल 1 दिन के तथ्यों के आधार पर मानसून आगमन की घोषणा करना मानकों का सरासर उल्लंघन है. कोई भी वैज्ञानिक संस्था ऐसा करने का जोखिम मोल नहीं लेगी. केवल 1 दिन की मामूली बौछार पर विश्वास रखकर आईएमडी ने केरल में 3 दिन पहले मानसून आने की घोषणा कर दी. वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है. मानसून के आगमन का संकेत देनेवाली वर्षा जोरों से होती है. इसी गलती की वजह से आईएमडी को अपना अनुमान सुधारना पड़ा और बाद में घोषणा करनी पड़ी कि मानसून की प्रगति रुक गई है और उसे आगे बढ़ने में 2 दिन लगेंगे.
आईएमडी का जवाब
आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने स्काईमेट के आरोप को ठुकराते हुए कहा कि हमने विज्ञान से कभी समझौता नहीं किया. हमारे अनुमान पर सिर्फ निजी संस्थाओं की नजर नहीं होती, बल्कि विश्व भर के प्रतिष्ठित संस्थान भी हमारे अनुमान का इंतजार करते हैं. वैज्ञानिक आधार पर तथ्यों का अध्ययन कर अनुमान लगाने के लिए आईएमडी दुनिया भर में जाना जाता है.
क्या सरकार का दबाव था?
क्या भारतीय मौसम विभाग पर मानसून को लेकर अच्छा व सकारात्मक अनुमान घोषित करने का दबाव रहता है? इस विभाग के प्रमुख रहते हुए डा. वसंत गोवारीकर ने इस तरह के दबाव की ओर संकेत किया था. इस विवाद को सरकारी विरुद्ध निजी संस्था के रूप में देखना उचित नहीं होगा. प्रश्न है कि अनुमान के मामले में कोई शत-प्रतिशत सटीक नहीं होता. 2013 और 2015 में स्काईमेट की भी गलत अनुमान को लेकर आलोचना हुई थी. सवाल अनुमान चूकने का नहीं है, बल्कि मानदंडों का पालन करने से जुड़ा है. जिस देश में 1 प्रतिशत रकम भी विज्ञान और संशोधन के लिए नहीं रखी जाती, वहां एकदम सटीक भविष्यवाणी की उम्मीद कैसे की जा सकती है? कभी ऐसा भी होता है कि हिंद महासागर में हवाओं की दिशा बदल जाती है.
मानसून पर लगी टकटकी
कृषि, सिंचाई, जल नियोजन, विद्युत निर्माण जैसे क्षेत्र मानसून पर अवलंबित हैं. आजकल निजी कंपनी स्काईमेट पर लोगों का ध्यान अधिक है क्योंकि दौर ही कुछ ऐसा है कि सरकारी उपक्रम की उपेक्षा कर निजी उद्यम को बढ़ावा दो. इस समय गोदरेज, टाटा आदि ऊर्जा कंपनियां ग्राहक होने से स्काईमेट के मौसम संबंधी अनुमान अधिक चर्चा में आ गए हैं.