नेताओं पर आपराधिक मामलों में कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

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    जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबे समय से बकाया ऐसे मामलों का दुखद नतीजा इस रूप में भी सामने आता है जिसमें एक महिला ने न्याय न मिलने की वजह से सुप्रीम कोर्ट के सामने एक सप्ताह पहले आत्मदाह किया था और फिर उसकी मौत हो गई. उसने 3 वर्ष पहले एक सांसद पर दुष्कर्म का आरोप लगाया था. सांसद का कुछ भी नहीं बिगड़ा जबकि उस महिला पर फर्जी जन्म प्रमाणपत्र दाखिल करने के आरोप में पुलिस ने केस दर्ज कर दिया.

    उसके आत्मदाह के बाद कई अधिकारी सस्पेंड किए गए. वर्तमान एवं पूर्व विधायकों-सांसदों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को तेजी से निपटाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई. साथ ही जांच एजेंसियों से भी कहा कि नेताओं पर दया मत दिखाओ. सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने मामलों में जांच की धीमी गति और कई मामलों में 10 वर्ष बाद भी आरोपपत्र दाखिल नहीं करने पर चिंता जताई. न्या. रमना ने कहा कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में 10 से 15 वर्ष के लिए आरोपपत्र दाखिल नहीं करने का कोई कारण नहीं है. सिर्फ उनकी प्रापर्टी अटैच करने से कुछ नहीं होगा. सीजेआई ने लंबे समय से बकाया मामलों को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने ज्यादातर मामलों में रोक लगा रखी है. जांच एजेंसी क्यों नहीं हाई कोर्ट से रोक हटाने की मांग करती? सुप्रीम कोर्ट ने जांच में विलंब के लिए सीबीआई और ईडी की भी खिंचाई की.

    किस कानून में कितने मामले लंबित

    सीबीआई में 121 मामले बकाया हैं. मनी लांड्रिंग कानून में 51 सांसदों तथा 71 विधायकों पर मामले हैं. ये 8 से 10 वर्ष पुराने केस हैं. 28 मामलों में जांच जारी है. विशेष अदालतों में लंबित 121 मामलों में से 58 में उम्रकैद का प्रावधान है. 37 केस की जांच चल रही है. सबसे पुराना मामला 2010 का है.

    दुर्भावनापूर्ण मामले वापस लिए जा सकते हैं

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारों को दुर्भावनापूर्ण आपराधिक मामलों को वापस लेने का अधिकार है लेकिन हाई कोर्ट संतुष्ट हो, तभी इसकी इजाजत मिल सकती है. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से सांसदों व विधायकों के खिलाफ मामलों की जांच पूरी करने के लिए जांच एजेंसियों की समयसीमा तय करने का आग्रह किया. इस पर पीठ ने कहा कि हम जांच एजेंसियों के बारे में कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि हम उनका मनोबल नहीं गिराना चाहते. उनके पास भी जजों की तरह बहुत अधिक काम है. मैनपावर कम होना असली समस्या है. सीबीआई व ईडी के निदेशक बता सकते हैं कि कितने अधिक मैनपावर की आवश्यकता है? न्यायमित्र विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि जांच एजेंसियों के पास दर्ज मामलों की स्थिति चिंताजनक है.

    आजीवन प्रतिबंध पर संसद विचार करे

    वकील विकास सिंह ने कहा कि अगर कोई नेता गंभीर अपराध में दोषी पाया जाता है तो उस पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए. इस पर सीजेआई ने कहा कि आजीवन प्रतिबंध ऐसी चीज है जिस पर संसद को गौर करना चाहिए, अदालत को नहीं.