The economic condition of the municipal bodies of 27 states is deplorable

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    हमारा देश तेजी से तरक्की करने वाला है, किंतु स्थानीय नगर निकायों में क्या सूरतेहाल हैं, इस पर भी नजर डालनी जरूरी है. दिल्ली नगर निगम में अगले माह होने जा रहे नगर निगम चुनावों की घोषणा के बाद जब सभी राजनीतिक दल इसकी तैयारियों में जुट गए हैं , इस बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट वाकई शोचनीय है. इस रिपोर्ट में आरबीआई ने 27 राज्यों के नगर निगमों की आर्थिक स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए टिप्पणी की है कि स्थानीय नगर निकायों के पास अपने राजस्व का कोई ठोस तरीका नहीं है. 

    उन्हें राज्य सरकारों और केंद्र से जो भी अनुदान हासिल होता है, उसी से वे काम चलाते हैं. कैसी विडंबना है कि एक ओर शहरों में जनसंख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है , वहीं नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के लिए लिए नगर निकाय राजस्व की कमी से ऐसा कर पाने में असमर्थ हैं. वैसे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों में नगर निकायों के ढांचे में सुधार भी हुआ है, लेकिन कोई खास बेहतर काम नहीं हुआ. वजह यही है कि स्थानीय निकायों के पास राजस्व प्राप्ति के मजबूत साधनों का अभाव है. यह रिपोर्ट  2017-18 से 2019-20 तक के वित्तीय खातों की जांच-पड़ताल करने के बाद जारी की गई है.

    आरबीआई की राय है कि शहरों में बेहतर सुविधाएं देने के लिए नगर निकायों को अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने की जरूरत है जिसके लिए उन्हें चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों से मिलने वाले अनुदान के अलावा अपने राजस्व के लिए मजबूत साधन जुटाएं. क्योंकि शहरों में लोगों को विश्वस्तरीय सुविधाएं तभी मिलेंगी जब नगर निकायों के पास अपना राजस्व होगा. रिपोर्ट में चिंता जाहिर करने के अलावा स्थानीय निकायों के लिए राजस्व को जुटाने के तरीकों को भी विशद किया गया है. सबसे पहले तो यह कि निकाय खाली पड़ी जमीन पर टैक्स लगाने की शुरूआत कर दें. 

    इमारतों के साथ ही  किसी की खदीदी किंतु उपयोग में न लाई जा रही भूमि पर भी कर लगाना आरंभ कर दिया जाए. इतना ही नहीं कोई रिनोविशन कराता है तो उससे भी टैक्स वसूला जाए. इसके अलावा पूंजी निवेश करने वालों के लिए बान्ड्स जारी किए जाएं, ताकि राजस्व में बढ़ोतरी हो सके.  इससे लोगों पर थोड़ा अधिक आर्थिक बोझ तो पड़ेगा किंतु इसके ऐवज में वे अधिक सुविधा पा सकेंगे. 

    अगर दिल्ली में होने जा रहे स्थानीय चुनावों की बात करें तो  एमसीडी चुनाव को लेकर दिल्ली स्टेट इलेक्शन कमीशन ने उम्मीदवारों के प्रचार खर्च की सीमा तय की हैं.  कोई भी एक उम्मीदवार प्रचार के दौरान केवल 8 लाख रूपये तक खर्च कर सकता है. हालांकि इससे पहले  2017 के  एमसीटी निकाय चुनाव में खर्च की सीमा 5.75 लाख रूपये थी. जिसे इस बार बढ़ाया गया है. मगर सवाल यही है कि आरबीआई की चिंताओं और सुझावों पर कहां तक अमल हो पाता है या यह सिर्फ एक कागज का पुलिंदा बन कर रह जाती है, बहरहाल अगर रिजर्व बैंक की रिपोर्ट पर गंभीरता से अमल किया जाए तो नगर निकाय काफी हद तक आर्थिक संकट से उबर सकते हैं.