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केंद्र सरकार ने 18 सितम्बर से 5 बैठकों के लिए संसद का विशेष अधिवेशन बुलाया है, जिससे अटकलें तेज हो गई हैं कि नई लोकसभा के लिए आम चुनाव समय पूर्व हो सकते हैं. इस पृष्ठभूमि में विपक्षी पार्टियों के गठबंधन (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायन्स) इंडिया की दो दिवसीय बैठक मुंबई में आयोजित हुई, जिसमें यह तय हुआ कि जहां तक संभव होगा वह 2024 का लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ेंगे और राज्यों में सीटों का बंटवारा ‘लेनदेन की सहयोगी भावना’ से जल्द सम्पन्न हो जायेगा. इंडिया ने 14 सदस्यों की एक समन्वय समिति का भी गठन किया है जोकि इस गठबंधन की उच्चतम निर्णायक बॉडी होगी और सीटों के बंटवारे पर सितम्बर के अंत तक फार्मूला तैयार करेगी. इंडिया का दावा है कि वह 60 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है और अगर वह एकजुट होकर चुनाव लड़ता है तो आसानी से सत्तारूढ़ दल को पराजित कर सकता है. विपक्षी गठबंधन इंडिया की इस तीसरी बैठक में 28 राजनीतिक पार्टियों के 63 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’ नारा देते हुए कहा कि गठबंधन का साझा न्यूनतम कार्यक्रम जल्द तैयार कर लिया जायेगा.

चुनावी योजना पर फोकस

भारतीय राजनीति में सफल चुनावी अभियान मुख्यत: 3 बातों पर निर्भर करता है- मीडिया में चर्चा, चुनावी योजना और प्रशासनिक एजेंडा. इंडिया गठबंधन की पहली दो बैठकें मीडिया चर्चा को समर्पित हो गई थीं. मुंबई की बैठक ने चुनावी योजना पर फोकस किया, कुछ ठोस निकलकर नहीं आया, लेकिन क्या रास्ता अपनाना है, इस पर मोटा-मोटी सहमति बनी और एक दिशा भी तय हो गई. इस बैठक में आश्वासन दिया गया कि साझा न्यूनतम कार्यक्रम जल्दी ही बना लिया जायेगा. लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का मजबूत विकल्प बनने के लिए उसे अभी बहुत लम्बा रास्ता तय करना है. इंडिया गठबंधन ने समन्वय समिति और अभियान समिति का गठन करके एक कदम आगे बढ़ाया है. समन्वय समिति में दो मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (तमिलनाडु) व हेमंत सोरेन (झारखंड) और अनुभवी राजनीतिज्ञ शरद पवार हैं. इसमें कांग्रेस का प्रतिनिधित्व केसी वेणुगोपाल कर रहे हैं.

चक्रव्यूह को भेदना है

एनडीए का चुनाव अभियान नरेंद्र मोदी के ईदगिर्द बुना जायेगा और इंडिया गठबंधन को इसी चक्रव्यूह को भेदना है. बीजेपी का एजेंडा एकदम स्पष्ट है. वह मोदी के व्यक्तित्व को संदेश बनायेगी- ‘अमृतकाल’ में समृद्धि व राष्ट्रीय अस्मिता के लिए ‘मजबूत लीडर’. इसके अतिरिक्त, समान नागरिक संहिता व ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों पर भी जबरदस्त जोर दिया जा रहा है ताकि मूल हिंदुत्व आधार को अपने पास से खिसकने न दिया जाये. बीजेपी का यह एजेंडा काम करता हुआ प्रतीत हो रहा है, भले ही प्रधानमंत्री या उनकी सरकार के प्रदर्शन से जनता को पूर्ण संतुष्टि न हो. यह सही है कि महंगाई, बेरोजगारी आदि ज्वलंत मुद्दे हैं, जिनसे लोग परेशान भी हैं. आश्चर्यजनक बात  है कि नौ वर्ष बाद भी सत्ता विरोधी लहर फिलहाल कहीं दिखाई नहीं दे रही है.

यह अपने आपमें जटिल पहेली है कि मोदी सरकार के प्रदर्शन से असंतोष के बावजूद मतदाताओं ने अभी तक इंडिया गठबंधन की तरफ झुकने के संकेत क्यों नहीं दिए हैं? कांग्रेस इंडिया गठबंधन की अघोषित नेता है और वह ही प्रशासनिक एजेंडा गठित कर सकती है. लेकिन कांग्रेस की समस्या यह है कि मध्यवर्ग में वह 2004 व 2009 की तरह अपनी पैठ अभी तक नहीं बना सकी है और बिना मध्यवर्ग के समर्थन के भारत में आम चुनाव जीतना कठिन है.

कांग्रेस विपक्षी खेमे में एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसकी मौजूदगी कश्मीर से कन्याकुमारी तक है. कांग्रेस को अनेक राज्यों में अपने प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार करना पड़ेगा, विशेषकर जहां वह बीजेपी के अकेले सामने है. अन्य मुकाबलों में सीट शेयरिंग भी आसान नहीं होगी क्योंकि अनेक क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस की कीमत पर ही अपना प्रभाव क्षेत्र बढाया है. अत: जमीनी स्तर पर समन्वय करना कठिन हो सकता है.