जब तक संसद में कानून पास नहीं होते, किसान अड़े

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    दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है. पिछले एक वर्ष में आंदोलनकारी किसानों को सरकार के व्यवहार-बर्ताव से जैसा अनुभव आया है, उसे देखते हुए वे आंख मूंद कर पीएम की घोषणा तथा सरकार के रवैये पर भरोसा नहीं कर सकते. किसान संगठनों ने तय किया है कि वे अपनी सभी मांगों को पूरा कराए बगैर आंदोलन समाप्त नहीं करेंगे. किसान जानते हैं कि यदि अभी उन्होंने आंदोलन वापस ले लिया तो बाकी मांगें लटक जाएंगी. 

    इसके अलावा सिर्फ पीएम की घोषणा से कानूनों का अस्तित्व नहीं मिटता. संसद में बाकायदा प्रस्ताव पारित कर तीनों कृषि कानूनों को समाप्त करना होगा. किसान नेता राकेश टिकैत ने तंज कसते हुए कहा कि पीएम को इतना मीठा भी नहीं होना चाहिए. आंदोलन के दौरान 750 किसान शहीद हुए. किसानों पर 10,000 मुकदमे हैं. बगैर बातचीत किए कैसे चले जाएं? प्रधानमंत्री ने इतनी मीठी भाषा का उपयोग किया है कि शहद को भी फेल कर दिया.

    किसानों की मांग और शर्ते

    किसानों की मांग है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि संयुक्त किसान मोर्चा से बात करें. सभी कृषि उपजों और सभी किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानून बनाने हेतु केंद्र सरकार सहमत हो. बिजली शोध बिल का मुद्दा हल किया जाए. प्रदर्शनकारी हजारों किसानों और उनके नेताओं पर दर्ज मुकदमे वापस हों. लखीमपुर खीरी के पीड़ितों को न्याय मिले और दोषियों पर कार्रवाई हो. किसानों के पराली जलाने से वायु प्रदूषण का जो मुद्दा है, उसका समाधान निकालें.

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    सुप्रीम कोर्ट पैनल के सदस्यों में रोष

    किसान आंदोलन के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने जो विशेषज्ञों का पैनल नियुक्त किया था, उसने केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की वापसी के निर्णय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. पैनल के सदस्य अनिल धनवट ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों की बेहतरी की बजाय राजनीति को चुना. मोदी और बीजेपी ने कदम पीछे खींच लिए. वे सिर्फ उत्तरप्रदेश और पंजाब का विधानसभा चुनाव जीतना चाहते हैं. धनवट ने दावा किया कि हमने 3 कृषि कानूनों का गहन अध्ययन और दोनों पक्षों से बातचीत कर कई सुधार और समाधान सौंपे थे. सरकार ने समाधानों का इस्तेमाल करने की बजाय कानून को वापस ले लिया. 

    धनवट ने कहा कि हमारी ओर से सुप्रीम कोर्ट को कई सिफारिशें भेजी गई लेकिन सरकार का फैसला देखकर लगता है कि कृषि कानून पर भेजी गई सिफारिशों को सरकार ने पढ़ा तक नहीं. इस फैसले में खेती और उसके विपणन क्षेत्र में सभी तरह के सुधारों का दरवाजा बंद कर दिया. उन्होंने कहा कि यदि कृषि कानून वापस ले लिए जाते हैं तो इस रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं है. अगर सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करता तो मैं इसे सार्वजनिक कर दूंगा. समिति ने रिपोर्ट तैयार करने में 3 माह का समय लगाया है. यह कूड़ेदान में नहीं जानी चाहिए. बीजेपी सांसद डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि कृषि कानूनों पर सरकार का पीछे हटना नुकसानदायक है. इससे दूसरे आर्थिक सुधारों पर भी संदेह पैदा होता है.

    क्या फिर लाए जा सकते हैं किसान बिल

    बीजेपी के वरिष्ठ नेता और फिलहाल राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने दावा किया कि कृषि बिल दोबारा लागू हो सकता है. इसी तरह बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि बिल बनते है, बिगड़ते है और फिर वापस आ जाएंगे. क्या इन बयानों से यह समझा जाए कि यूपी-पंजाब विधानसभा चुनाव निपटने के बाद सरकार फिर इन विवादास्पद बिलों को नए कलेवर में वापस ले आएगी?