राहुल गांधी की बढ़ती सक्रियता देख असंतुष्टों व विपक्ष में बेचैनी

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    कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की बढ़ती सक्रियता से न केवल बीजेपी और एनडीए में बेचैनी है, बल्कि तीसरे मोर्चे की संभावना तलाशने में जुटे नेताओं के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं के असंतुष्ट समूह जी-23 के भीतर भी जबरदस्त हलचल है. बहाना था पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के जन्मदिन पर हुई डिनर पार्टी का, लेकिन इसमें कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के अलावा विपक्षी पार्टियों के नेता भी मौजूद थे. इस बैठक में मोदी सरकार की आलोचना तो की गई लेकिन साथ में कांग्रेस के परिवारवाद के खिलाफ भी आवाज उठाई गई.

    स्पष्ट है कि विगत कुछ समय से राहुल गांधी जिस तरह की सक्रियता दिखा रहे हैं, उसे देखकर जी-23 गुट के नेता हतप्रभ हैं. वे मानकर चल रहे थे कि सोनिया गांधी का स्वास्थ्य आमतौर पर ठीक नहीं रहता और राहुल जिम्मेदारी संभालने को लेकर उदासीन हैं इसलिए कांग्रेस के भविष्य का सवाल उठाकर वे अपना उल्लू सीधा कर लेंगे. गत वर्ष कपिल सिब्बल सहित 23 बागी नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर 2014 में सत्ता गंवाने के बाद से पार्टी की स्थिति पर चिंता जताई थी. कपिल सिब्बल की डिनर पार्टी में एक तरह से ऐसा जमावड़ा देखा गया जिसके जरिए जी-23 गुट ने राहुल गांधी व पार्टी हाईकमांड को अपनी ताकत का अहसास कराने की कोशिश की. यह दिखाया गया कि हम भी कुछ कम नहीं हैं.

    बागियों ने दिखाया दम

    सिब्बल की डिनर पार्टी में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम, आनंद शर्मा, शशि थरूर थे जो कांग्रेस के भविष्य को लेकर प्रश्न करते रहे हैं. इनके अलावा विपक्षी नेताओं में राजद प्रमुख लालूप्रसाद यादव, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, शिवसेना के संजय राऊत, टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन तथा नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला शामिल हुए. इतना ही नहीं, इसमें अकाली दल की ओर से वरिष्ठ नेता नरेश गुजराल तथा बीजू जनता दल की ओर से पिनाकी मिश्रा मौजूद थे.

    निशाना कहीं और था

    यद्यपि यह दिखाया गया कि डिनर के पीछे मोदी सरकार के खिलाफ तमाम दलों को एकजुट  करने का लक्ष्य है परंतु एक खास मकसद पार्टी हाईकमांड को अपनी शक्ति से अवगत कराना था. यह दर्शाया गया कि जी-23 नेताओं को पवार, अखिलेश व लालू आदि विपक्षी नेताओं का समर्थन मिला हुआ है तथा बीजद, अकाली दल, टीआरएस तथा वाईएसआर कांग्रेस भी उनका साथ दे रही हैं. इसी डिनर पार्टी में अकाली दल नेता नरेश गुजराल ने बिनमांगी सलाह देते हुए कहा कि जब तक कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के चंगुल से बाहर नहीं निकल जाती तब तक पार्टी को मजबूत करना बहुत मुश्किल होगा. जी-23 नेता चाहते रहे हैं कि पार्टी में उनका वर्चस्व बना रहे. उन्हें सोनिया का नेतृत्व चाहे जैसा भी चल रहा है, मंजूर है लेकिन वे राहुल को उभरते देखना नहीं चाहते. यदि राहुल की चल जाए तो पुराने पार्टी नेताओं को पीछे हटकर नए नेताओं के लिए जगह बनानी पड़ेगी.

    पहल करने लगे राहुल, जी-23 नेता हतप्रभ

    संसद के मानसून सत्र के दौरान जिस मजबूती से राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए न सिर्फ केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास किया, बल्कि बिखरे विपक्ष को नेतृत्व दिया. इसे देखकर बीजेपी के रणनीतिकारों के साथ कांग्रेस का असंतुष्ट समूह भी बैकफुट पर आ गया. राहुल गांधी लगातार मोदी सरकार को पेगासस जासूसी, बड़े उद्योगपतियों से निकटता, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आड़े हाथ लेते रहे हैं. अब उन्होंने पहलकदमी करते हुए श्रीनगर पहुंचकर उन जी-23 नेताओं को हक्का-बक्का कर दिया जो नेशनल कांफ्रेंस व पीडीपी जैसे दलों के नेताओं के साथ गुपकार बैठक में शामिल हुए थे. राहुल गांधी ने खुद को कश्मीरी पंडित बताते हुए कहा कि मेरे परिवार के लोगों ने भी झेलम का पानी पिया होगा. थोड़ी कश्मीरियत मेरे अंदर भी है.

    उन्होंने याद दिलाया कि उनका जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश की धरती से नाता है. इलाहाबाद पहुंचने से पहले उनका परिवार कश्मीर में रहता था. जम्मू-कश्मीर की ताकत भाईचारा है. हिंदुस्तान की नींव में कश्मीरियत भी शामिल है. जम्मू-कश्मीर के लोगों से आप प्यार से जो करवा सकते हैं, उसे नफरत और हिंसा से कभी नहीं करवा सकते. राहुल ने आरोप लगाया कि संसद में पेगासस, राफेल, जम्मू-कश्मीर, बेरोजगारी पर नहीं बोल सकता क्योंकि संसद में सरकार हमें बोलने नहीं दे रही है. राहुल गांधी की कार्यशैली व नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले जी-23 समूह को अब लगने लगा है कि देश में राहुल की छवि बदल रही है जिसके कारण इस समूह का अभियान न केवल जनता के सामने, बल्कि संगठन के भीतर भी निष्प्रभावी और निरर्थक बनकर रह जाएगा.