क्यों एक के बाद एक नेता छोड़ रहे पार्टी? आत्म परीक्षण करे कांग्रेस

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    कांग्रेस में 46 वर्षों तक रहने के बाद वरिष्ठ नेता व पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने पार्टी छोड़ दी. विगत 2 वर्षों में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी और आरपीएन सिंह ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया. इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस छोड़ दी थी. अश्विनी कुमार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के वफादार माने जाते थे. उन्होंने अपना इस्तीफा सोनिया को ही भेजा जिसमें उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई है. उनके इस्तीफे को पंजाब में वोटिंग से पहले बड़ा झटका माना जा रहा है. 

    यद्यपि अश्विनी कुमार कोई खास चमक-दमक वाले नेता नहीं थे लेकिन पार्टी संगठन में उनकी गरिमापूर्ण व प्रभावशाली छवि थी. उनकी पहचान एक बुद्धिजीवी और इतिहास के जानकार नेता के रूप में रही. संसद सदस्य और मंत्री दोनों ही हैसियत से अश्विनी कुमार के भाषण राष्ट्रीय उद्देश्यों पर प्रकाश डालने वाले और पार्टी की नीतियों पर जोर देने वाले रहे. वे अपने विचार हमेशा बेबाकी से रखते थे. इस समय जब कांग्रेस 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ रही है, अश्विनी कुमार का इस्तीफा देना पार्टी को करारा झटका है. इतने नेताओं के पार्टी छोड़ देने से स्पष्ट है कि कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा चरमरा गया है और उच्च स्तर पर आपसी संवाद का अभाव है.

    2 वर्षों में कई अलग हुए

    अपने इस्तीफे में अश्विनी कुमार ने लिखा कि मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए मैं पार्टी के बाहर रहकर राष्ट्रीय व सार्वजनिक कर्तव्यों को बेहतर तरीके से निभा पाऊंगा. यह सोचने लायक बात है कि पिछले 2 वर्षों में ऐसी कौन सी बात हुई कि कितने ही नेताओं ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया? क्या सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका इनकी बात नहीं सुन रहे हैं या जानबूझकर उपेक्षा कर रहे हैं? 

    जब किसी को विश्वास में न लिया जाए और निर्णयों में सहभागी न बनाया जाए तो नेता अपमानजनक स्थिति में रहने की बजाय पार्टी छोड़ना बेहतर समझते हैं. कांग्रेस के जी-23 गुट की भी यही व्यथा थी कि पार्टी में सामूहिक नेतृत्व नाम की कोई चीज नहीं है. महत्वपूर्ण मसलों पर कोई सलाह-मशविरा नहीं किया जाता. राज्य में कोई नेता प्रभावशाली बनता नजर आया तो उसके मुकाबले दूसरा नेता खड़ा कर दिया जाता है. पार्टी दिशाविहीन तरीके से काम कर रही है.

    असंतोष की वजह क्या है?

    कांग्रेस के अनेक नेता चाहते हैं कि गांधी परिवार विवेकपूर्ण तरीके से पार्टी का नेतृत्व करे. कुछ ऐसे कदम उठाए जाएं जो पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरक हों. यदि विपक्ष के रूप में मोदी सरकार व बीजेपी से टक्कर लेनी है तो सुविचारित नीतियां व बयान तैयार किए जाएं. इसके लिए मिलजुलकर काम किया जाए. जिन नेताओं ने जी-23 गुट बनाया, उनके साथ पार्टी नेतृत्व ने कोई संवाद करना जरूरी नहीं समझा. 

    ऐसी कोई सोच नजर नहीं आती कि राष्ट्र पहले है और पार्टी बाद में. अश्विनी कुमार की पीड़ा उनके इसी बयान से झलकती है कि वे पार्टी में रहकर राष्ट्रसेवा नहीं कर पाएंगे. अब देखना होगा कि क्या वे किसी अन्य पार्टी में शामिल होते हैं? नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है, इसलिए उपयुक्त होगा कि कांग्रेस नेतृत्व आत्म परीक्षण करे कि गलती कहां हो रही है और क्या कुछ सधे हुए कदमों से पार्टी में जान फूंकी जा सकती है! नेताओं का विश्वास हासिल करना प्राथमिकता होनी चाहिए.