अग्निपथ योजना के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन, तोड़फोड़, ट्रेन व बसें जलाना निश्चित रूप से चिंताजनक है परंतु यह हकीकत भी अपनी जगह है कि सेना में खर्च बचाने के लिए अग्निपथ योजना लाई गई है. 4 वर्ष के लिए भर्ती किए गए एक अग्निवीर से सरकार 11.5 करोड़ रुपए की बचत करेगी. इस योजना के तहत सरकार 4 वर्ष की अवधि के बाद रिटायर होनेवाले अग्निवीर को इस अवधि का वेतन और फंड मिलाकर 23,35,000 रुपए देगी. इसके विपरीत 17 वर्ष के अनुबंध पर रखे गए स्थायी सैनिक पर सरकार को 11.5 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते हैं.
बड़े रिटायर्ड अफसरों की पेंशन भी ज्यादा देनी पड़ती है. अग्निवीर के रूप में नई भर्ती योजना सेना के वेतन, पेंशन व अन्य बढ़ते खर्च को बचाने की एक बड़ी कवायद है. सरकार की दलील है कि उसे सेना के आधुनिकीकरण के लिए भी पैसा चाहिए. सरकार की दलील है कि सैनिकों के वेतन और पेंशन के भारी बोझ की वजह से लंबे समय से सेना का आधुनिकीकरण लंबित है. अभी वेतन से ज्यादा पेंशन पर खर्च बढ़ जाता है. सेना के तीनों अंगो में 11 लाख सैनिक और 36,000 अधिकारी हैं. इनमें प्रतिवर्ष लगभग 50,000 रिटायर हो जाते हैं.
सेना में न्यूनतम 17 वर्ष की नौकरी कर लेने के बाद रिटायरमेंट लेनेवाले सिपाही की औसत आयु 35 वर्ष हो जाती है जिसे पेंशन मिलती है. इस वर्ष तीनों सेनाओं के लिए वेतन और पेंशन मद में 2,55,000 करोड़ रुपए रखे गए हैं. इसमें पेंशन का हिस्सा 1.2 लाख करोड़ रुपए है. अग्निवीर के 4 वर्षों के कार्यकाल में प्रशिक्षण छुट्टी व वास्तविक सेवा शामिल है. उन्हें न पेंशन मिलेगी न ग्रेच्युटी. सेना अपने सैनिकों की औसत आयु 32 से घटाकर 26 वर्ष करना चाहती है.
नौसेना में सबकुछ इतना तकनीकी है कि 4 वर्ष में अग्निवीर उसे पूरी तरह सीख ही सकता. वहां अग्निवीर की कितनी उपयोगिता होगी. उसे क्या काम दिया जाएगा? युवाओं की चिंता अपने भविष्य, सुरक्षा, पुन: रोजगार मिलने एवं सम्मान को लेकर है. ऐसा लगता है कि सेना में अब जवानों की सारी भर्ती अग्निवीर के तौर पर ही होगी.