संविधान पीठ करेगी फैसला, दिल्ली के नौकरशाहों पर किसका हो कंट्रोल

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    जब तक केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दोनों में एक ही पार्टी की सरकार रही या दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री यथास्थिति से संतुष्ट रहे तब तक दिल्ली में नौकरशाहों व पुलिस पर नियंत्रण को लेकर कोई टकराव नहीं आया लेकिन जब से दिल्ली में केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ सरकार आई है तभी से यह खींचातानी जोर पकड़ती देखी गई है. 

    नौकरशाही पर अपना नियंत्रण पाने के लिए केजरीवाल शुरू से छटपटाते रहे. उनका दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग से कदम-कदम पर टकराव आया. उनके खिलाफ केजरीवाल ने रेल भवन के सामने रातभर धरना दिया था इसके बाद एलजी के बंगले में जाकर भी धरने पर बैठे. नजीब जंग के बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर बने अनिल बैजल से भी केजरीवाल की अनबन रही. 

    एक बार मुख्य सचिव की पिटाई की घटना भी हुई. केजरीवाल चाहते हैं कि उन्हें अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों के समान पूर्ण अधिकार दिए जाएं लेकिन दिल्ली, पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में ऐसा संभव नहीं हो पाया है. अब दिल्ली में नौकरशाहों के नियंत्रण पर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच चल रहे सत्ता संघर्ष को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के पास भेज दिया है. 

    सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि 5 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं से संबंधित सीमित मुद्दे पर फैसला करेगी. इसके बावजूद अनुच्छेद 239 एए की व्याख्या को लेकर किसी अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे पर नए सिरे से फैसला नहीं किया जाएगा. 

    अनुच्छेद 239 दिल्ली सरकार की विधायी और कार्यकारी शक्तियों को स्पष्ट करता है. इसके अनुसार राजधानी में भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था केंद्र के अधीन ही रहेंगे. जो व्यवस्था संविधान में निर्धारित है उसे स्पर्श नहीं किया जाएगा. मामले की अगली सुनवाई 11 मई को होगी.