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    यद्यपि सरकार का दावा करती है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों पर उसका कोई दबाव नहीं है आर वह अपने तरीके से कार्रवाई करती हैं लेकिन विपक्ष मानकर चलता है कि प्रतिशोध की भावना से इन एजेंसियों से छापे डलवाए जाते हैं. केंद्र अपनी सुविधा और मर्जी के मुताबिक इन्हें टारगेट देकर सक्रिय करता है. रायपुर में 24 फरवरी से कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन होने जा रहा है. इसके लिए तैयारियां चल ही रही थीं कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कोयला लेवी घोटाले में 6 कांग्रेस नेताओं के ठिकानों पर छापा मारा.

    ये छापे रायपुर के श्रीराम नगर, डीडी नगर, गीतांजलि नगर और मोवा तथा भिलाई में मारे गए. कांग्रेस विधायकों तथा पार्टी पदाधिकारियों को निशाना बनाया गया. इसी तरह झारखंड में भी छापेमारी की गई. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह कार्रवाई अधिवेशन को डिस्टर्ब करने के लिए है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा कि पिछले 9 वर्षों में ईडी ने जो छापेमारी की है, उनमें 95 फीसदी विपक्षी नेता हैं और यह रेड सबसे ज्यादा कांग्रेस नेताओं के खिलाफ है.

    अदानी की हकीकत खुलने और भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से हताश हो चुकी बीजेपी इस तरीके से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है. यह उसकी कायरतापूर्ण हरकत है लेकिन कांग्रेस इन हथकंडों से झुकने वाली नहीं है. खडगे ने चुनौती देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री में जरा भी प्रामाणिकता है तो वे अपने परम मित्रों के महाघोटालों पर छापा मार कर दिखाएं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस अधिवेशन के पूर्व की गई यह कार्रवाई बदले और छल की मिसाल है.

    ईडी प्रधानमंत्री मोदी के हाथों विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई का शस्त्र बन गया है. जांच एजेंसियां निष्पक्ष रूप से काम नहीं करतीं. कांग्रेस नेता पवन खेड़ा के अनुसार कांग्रेस के खिलाफ 24 बार, टीएमसी के खिलाफ 19 बार तथा एनसीपी के खिलाफ 11 बार छापे मारे गए. इनके अलावा शिवसेना, डीएमके, राजद, बसपा, पीडीपी, इनेलोद, वायआरएस कांग्रेस, पीपीएम, नेकां, अन्ना द्रमुक, मनसे पर भी ऐसी कार्रवाई की गई.

    विपक्षी पार्टियों और उनके नेताओं पर अलोकतांत्रिक दबाव बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किए जाने का लंबे समय से आरोप लगता रहा है. सभी जानते हैं कि राजनीति धनशक्ति से चलती है और कोई भी पार्टी इसका अपवाद नहीं है. ऐन कांग्रेस अधिवेशन के पहले रंग में भंग करने और कांग्रेस नेताओं को भ्रष्ट साबित करने के उद्देश्य से छापे डलवाए गए. इसे रूटीन कार्रवाई नहीं कहा जा सकता. यह भी देखा गया कि विपक्ष के जो नेता अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए, उनके खिलाफ कोई सरकारी जांच एजेंसी कार्रवाई नहीं करती. वे दूध के धुले बन गए और उनके सारे मामले ठंडे बस्ते में चले गए.