प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प शासनकाल में अपनी अमेरिका यात्रा के समय टेस्ला इले्ट्रिरक कार कंपनी के सीईओ एलन मस्क से मुलाकात कर उन्हें भारत में अपना प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया था. उस समय मस्क ने हामी भरी लेकिन फिर उन्होंने टेस्ला का प्लांट चीन में लगाया. यह एक तरह की वादाखिलाफी थी. अब एलन मस्क ने शर्त रखी है कि जबतक उनकी कंपनी को भारत में टेस्ला कारों को बेचने और सर्विसिंग की अनुमति नहीं दी जाती तबतक वहां कार निर्माण का प्लांट स्थापित नहीं हो सकता.
इसका अर्थ है कि भारत पहले चीन में बनी हुई टेस्ला ई-कारों का आयात करना शुरू कर दे बाद में मस्क भारत में प्लांट लगाने की सोचेंगे. मस्क ने चीन में बिना किसी शर्त के ई-कार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया था लेकिन अब भारत पर शर्ते क्यों लाद रहे हैं? एक ओर तो अमेरिका चीन का कट्टर विरोधी है लेकिन फिर भी उसके उद्योगपति चीन जाकर वहां उद्योग लगाते हैं. पूंजी निवेश के लिए चीन को ही चुनते है. इसकी एक वजह यह भी है कि चीन में श्रमिक सस्ते में मिलते हैं. उनसे कम पैसे में अधिक घंटे काम लिया जा सकता है.
इससे निर्माण लागत में कमी आती है. चीन सरकार भी विदेशी कंपनियों को अपने यहां आकर्षित करने के लिए उनपर श्रम कानून की बंदिशें नहीं लगाती. भारत चीन में बनी कार नहीं खरीदता क्योंकि उनकी गुणवत्ता को लेकर संदेह है. एलन मस्क ने गत वर्ष अगस्त में कहा था कि अगर टेस्ला इम्पोर्टेड वाहनों के साथ पहली बार सफल होती है तो वह भारत में एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित कर सकती है.
टेस्ला भारत में अपनी व्हीकल लॉन्च करना चाहती है लेकिन भारत में इम्पोर्ट ड्यूटी दुनिया के किसी भी बड़े देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है. अभी भारत में 40,000 डालर (30 लाख रुपए) से अधिक की कार आयात करने पर 100 प्रतिशत टैक्स वसूला जाता है.