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    बीजेपी का एजेंडा अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और देश में कॉमन सिविल कोड लागू करने का था. इनमें से शुरू के 2 लक्ष्य साध लिए गए लेकिन तीसरा लक्ष्य अभी हासिल नहीं हो पाया है. जिस देश में पर्सनल लॉ या समुदाय के वैयक्तिक कानून मौजूद हैं वहां सोच-समझकर और पूरी तैयारी से ही कॉमन सिविल कोड या समान नागरिक संहिता को लाया जा सकता है. इसमें जल्दबाजी महंगी पड़ सकती है. शायद यही वजह है कि सरकार के मन में कुछ है और मुंह पर अलग!

    केंद्रीय कानून व न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने लोकसभा में कहा कि केंद्र सरकार ने यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने पर कोई फैसला नहीं किया है. दूसरी ओर उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकारें इस विषय पर कानून लाने के लिए स्वतंत्र हैं. विधि आयोग ने अपनी वेबसाइट पर कुटुंब विधि सुधार को लेकर लोगों की राय मांगी थी. आयोग ने समान सिविल संहिता से संबंधित मुद्दों की समीक्षा की है.

    रिजिजू ने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 44 यह उपबंध करता है कि सरकार देश के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता लाने का प्रयास करेगी सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में कई मामले लंबित हैं. ऐसे में सरकार ने यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए कोई फैसला नहीं किया है. केंद्रीय कानून मंत्री के बयान से संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार स्वयं यूनिफार्म सिविल कोड लाने की पहल करने की बजाय बीजेपी शासित राज्यों से ऐसी पहल कराना चाहेगी.

    उन्होंने कहा भी कि उत्तराखंड की बीजेपी सरकार समान नागरिक संहिता को लेकर तेजी से काम कर रही है. स्पष्ट है कि किसी भी देश के नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि को लेकर समान कानून होना चाहिए लेकिन मुस्लिम वर्ग अपने ‘मोहमडन लॉ’ को छोड़ना नहीं चाहेगा.

    ऐसी स्थिति में बीजेपी शासित राज्यों से पहल करवाते हुए समान नागरिक कानून को आजमाया जाएगा. उत्तराखंड में शुरूआत करते हुए आगे बढ़ा जाएगा. सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बाद केंद्र सरकार के ध्यान में आ गया है कि यदि उसने कॉमन सिविल कोड की दिशा में कदम रखा तो मुस्लिमों का विरोध शुरू हो जाएगा.