editorial teacher-thrashes-10-year-old-student-in-karnataka-school-throws-him-from-balcony-innocent-dies

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    गुरू का दर्जा ईश्वरतुल्य माना गया है तभी तो कहा गया है- गुरू ब्रम्हा, गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरा, गुरू साक्षात परं ब्रम्ह, तस्मै श्री गुरूवे नम: गुरू की महत्ता दर्शाते हुए यह भी कहा गया- गुरू गोविंद दोऊ खडे, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरू आपकी जो गोविंद दियो बताय! शिक्षक के पेशे को अत्यंत आदर्श या नोबल प्रोफेशन माना गया है जो ज्ञान के प्रकाश से विद्यार्थियों के मन से अज्ञानरूपी अंधकार दूर कर उन्हें संस्कारित करता है. वशिष्ठ, विश्वामित्र, संदीपनी जैसे गुरूओं ने ही राम और कृष्ण को जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार किया था. गुरू त्यागी, तपस्वी जीवन जीकर अपने शिष्यों को कुुशलतम बनाया करते थे. उनके लिए शिष्य पुत्र के समान रहा करता था.

    गुरूकुल के अनुशासन में ऐसी शिक्षा दी जाती थी जो माता-पिता भी नहीं दे सकते थे. आज की स्थिति देखें तो लगता है कि कुछ शिक्षक बच्चों को स्नेहपूर्वक पढ़ाने की बजाय कमाई बनते जा रहे हैं. यह उनका क्रोध है या पागलपन कि नन्हें सुकुमार बच्चों की जान लेने पर उतारू हो जाते हैं. ऐसी खौफनाक घटनाएं स्तब्ध कर देनेवाली हैं. दिल्ली की एक शिक्षिका ने प्राइमरी स्कूल की एक छात्रा की बुरी तरह पिटाई कर उसे स्कूल की पहली मंजिल से नीचे फेंक दिया. उस बच्ची को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. कर्नाटक के गांव में मुथप्पा नामक संविदा शिक्षक (कांट्रैक्ट टीचर) ने चौथी कक्षा के 10-11 वर्षीय छात्र की फावडे से जमकर पिटाई की और फिर उसे स्कूल की बालकनी से धक्का देकर नीचे गिरा दिया.

    इलाज के दौरान बालक की मौत हो गई. यह कितनी भयानक घटनाएं हैं? क्या अभिभावक अपने बच्चों को इसलिए स्कूल भेजते हैं कि उन्हें पढ़ान-समझाने की बजाय कोई सिरफिरा शिक्षक उनकी जान ले ले. कभी ऐसी भी खबर आती है कि शिक्षक के तमाचे से बच्चे के कान का पर्दा फट गया या पिटाई से किसी को फ्रैक्चर हो गया. ऐसे दरिंदों के मन में दया, ममता या स्नेह नाम की कोई चीज ही नहीं होती. ऐसे असहाय छोटे बच्चे की स्कूल में कौन रक्षा करेगा? कानूनन अब कोई भी शिक्षक बच्चे को छड़ी तो दूर, चपत भी नहीं मार सकता.

    डांटना, धमकाना भी मना है ताकि बच्चे दहशत में न आएं. जब इतना सब है तो फिर कुछ विक्षिप्त और क्रोधी शिक्षक बच्चों के लिए काल क्यों बने हुए हैं. क्या वे अपना व्यक्तिगत असंतोष या फ्रस्ट्रेशन इन मासूम बच्चों पर निकाल रहे हैं? क्या माता-पिता को स्कूल भेजते समय बच्चे का बीमा कराना पड़ेगा? हो सकता है कि किसी बच्चे की पढ़ाई में एकाग्रता न हो, उसने होम वर्क न किया हो अथवा स्लो लर्नर (मंद बुद्धि) हो तो क्या उस पर इस तरह टूट पड़ना चाहिए? शिक्षकों की नियुक्ति करते समय देखा जाए कि उनमें मानवीय भावनाएं हैं भी या नहीं. गुस्सैल व हिंसक व्यक्ति को शिक्षक न बनाया जाए.