आईटी कंपनियों के सामने एक नई चुनौती देखी जा रही है.
सवाल नीयत का है. यदि पढ़े-लिखे सुशिक्षित लोग ही धोखाधड़ी पर उतर आएं तो उनमें और अपराधी प्रवत्ति के लोगों में फर्क ही क्या रह जाएगा! ईमानदारी, प्रतिबद्धता, प्रामाणिकता जैसे गुण व्यक्ति के चरित्र में रहने चाहिए. जिस संस्थान में कोई कर्मचारी मूल रूप से नौकरी कर रहा है, उसके प्रति उसके मन में लगाव, जुड़ाव व समर्थन होना चाहिए क्योंकि वहां से उसकी रोजी-रोटी जुड़ी हुई है. ऐसा न होकर अधिक धन कमाने के लोभ में कुछ कर्मचारी जालसाजी पर उतर आए हैं.
आईटी कंपनियों के सामने एक नई चुनौती देखी जा रही है. वहां वर्क फ्राम होम में चालक कर्मचारी चीटिंग या धोखाधड़ी पर उतर आए हैं. वे एक ही समय एक से ज्यादा कंपनियों में काम करने लगे हैं. फुल टाइम डे जॉब करने वाले कई टेक प्रोफेशनल किसी साइड प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. वे कंपनी के दफ्तर में रहकर ऐसी कारगुजारी नहीं कर सकते थे लेकिन वर्क फ्राम होम के दौरान वे इस सुविधा का नाजायज फायदा उठा रहे हैं.
बिडला सॉफ्ट के सीईओ व नोएडा के लिए क्षेत्रीय परिषद के चेयरमैन को शिकायत मिली कि एक कर्मचारी 7 कंपनियों के लिए सामानंतर रूप से काम कर रहा है. इससे रेवेन्यू और प्राडक्टिविटी का नुकसान हो रहा है. उस कर्मचारी के कई प्राविडेंट फंड खाते पाए जाने पर इसे एक फर्म के एचआर मैनेजर ने पकड़ा. पता चला कि वह एक साथ कई दूकानदारी चला रहा था. अन्य प्रगत देशों के समान भारत में कर्मचारियों का सेंट्रलाइज्ड डेटाबेस नहीं है.
नियोक्ताओं के लिए यह पता लगाना मुश्किल है कि कोई कर्मचारी किसी और कंपनी में भी उसी वक्त पर काम कर रहा है या नहीं. रोजगार की अवधि के दौरान कर्मचारी की अन्य स्त्रोतों से कोई वेतन आये हैं या नहीं, यह पता लगाने के लिए नियोक्ताओं को कर्मचारी के टैक्स फाइलिंग या भविष्य निधि खाते की जांच करने की आवश्यकता है. भारतीय अदालतों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि मूनलाइटिंग कर्मचारी की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.