बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जाति जनगणना की मांग को लेकर 10 पार्टियों के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ, जिसमें बीजेपी नेता भी शामिल थे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की. नीतीश ने दावा किया कि पीएम ने पूरी बात सुनी. उन्होंने हमारी बात को नकारा नहीं. हमने कहा कि इस पर विचार कर आप निर्णय लें. हमें सरकारी निर्णय का इंतजार रहेगा.
तथ्य यह है कि जातिगत जनगणना को लेकर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व खामोश है तथा मोदी सरकार संसद के मानसून सत्र में साफ कह चुकी है कि वह आगामी जनगणना में जातियों की अलग से गिनती नहीं कराएगी. उधर राजद प्रमुख तेजस्वी यादव ने तर्क किया है कि जब देश में पेड़-पौधों, जानवरों की गिनती हो सकती है तो जातियों की क्यों नहीं? यह तो राष्ट्रहित में है. सरकार के पास जाति का कोई आंकड़ा नहीं है कि किस समाज के कितने लोग हैं. इस वजह से सरकारी योजनाओं का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुंचता. वास्तविकता यह है कि यूपी विधानसभा चुनाव के पूर्व क्षेत्रीय पार्टियां जाति जनगणना के बहाने बीजेपी पर दबाव बढ़ा रही हैं.
बिहार विधानसभा ने जाति जनगणना को लेकर सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है. तेजस्वी यादव ने कहा कि संसद में हाल ही किए गए संविधान संशोधन के बाद सभी राज्य ओबीसी में जातियों को शामिल कर सकते हैं, बशर्ते जाति जनगणना करा ली जाए. यही तर्क धर्म को लेकर भी लागू होता है. जहां तक केंद्र सरकार का रवैया है, वह हाल ही में कह चुकी है कि वर्तमान नीति के तहत केवल अनुसूचित जाति व जनजाति की ही गणना की जाएगी. यह बात अलग है कि हाल के केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में ओबीसी समुदायों को उदारतापूर्वक स्थान दिया गया है.
जदयू नेताओं की दलील है कि ओबीसी कोटा रहने के बावजूद केंद्र सरकार की नौकरी में ओबीसी के केवल 9.42 प्रतिशत क्लास-ए अधिकारी, 8.95 प्रतिशत क्लास-बी अधिकारी तथा 18.94 फीसदी क्लास-सी कर्मचारी हैं. ओडिशा की बीजद सरकार ने भी ओबीसी जनगणना का समर्थन किया है. बीजेपी आमतौर पर सवर्ण वर्गों की पार्टी मानी जाती है जिसमें कुछ ओबीसी नेता शामिल तो हैं किंतु उन्हें खास अहमियत नहीं दी जाती.