कब तक होगा निभाव शिंदे BJP के रिश्तों में आई खटास

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महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे गुट) और बीजेपी के संबंध भारी तनाव के दौर से गुजर रहे हैं. यदि तालमेल कायम रखना है तो कटुतापूर्ण बातें टाली जानी चाहिए. बीजेपी सांसद अनिल बोंडे ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को निशाने पर लेते हुए कहा कि मेंढक कितना भी फूल जाए, हाथी नहीं बन सकता. अगर भविष्य में शिंदे गुट आगे बढ़ना चाहता है तो बीजेपी को नाराज करने से कोई फायदा नहीं होगा. बोंडे ने यहां तक कह दिया कि ठाणे का मतलब महाराष्ट्र नहीं है. बीजेपी ने शिंदे गुट को सख्त संदेश दे दिया कि लक्ष्मण रेखा पार न करे. शिंदे खुद को देवेंद्र फडणवीस से ज्यादा लोकप्रिय दिखाने की कोशिश न करें.

गत वर्ष जून में जब बीजेपी ने शिंदे गुट के साथ गठबंधन किया था तब शिंदे को सीएम पद देकर पुरस्कृत करने का निर्णय लिया था. केंद्र के इस फैसले से महाराष्ट्र के बीजेपी नेता-कार्यकर्ता व्यथित हो गए थे जो कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते थे. 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व बीजेपी जानती है कि वह राज्य में अकेले राजनीतिक चुनौती से नहीं निपट सकती. उसे शिंदे की शिवसेना पर निर्भर रहना पड़ेगा लेकिन पिछले 11 महीनों में शिंदे का कामकाज बीजेपी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है.

यद्यपि शिंदे गुट के साथ गठबंधन के समय बीजेपी को पता था कि शिंदे की क्षमता व सीमाएं क्या हैं लेकिन उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई कि वे उद्धव ठाकरे के प्रति वफादार शिवसैनिकों को तोड़कर अपने साथ लाएं. यद्यपि शिंदे शिवसेना के 56 में से 40 विधायक तथा 19 में से 13 सांसद अपने साथ लाए लेकिन फिर भी उद्धव ठाकरे के समर्थकों का आधार कायम है. बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस को इसलिए डिप्टी सीएम बनाया क्योंकि वह राज्य में सुशासन से कोई समझौता करना नहीं चाहती थी. बीजेपी जानती है कि उसे मोदी के नाम पर अगले वर्ष लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ना और जीतना है.

महाविकास आघाड़ी की सरकार गिराने और शिवसेना को तोड़ने का लक्ष्य पूरा करने के लिए बीजेपी ने शिंदे को एक मोहरे की तरह इस्तेमाल किया. वह नहीं चाहेगी कि हमेशा शिंदे को ही सीएम पद पर देखे. यह संभव है कि शिंदे गुट राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 22 सीटों का दावा करे जो बीजेपी को मंजूर नहीं होगा. विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी अपने दम पर कुल 288 में से 145 सीटों पर जीतना चाहेगी. शिंदे गुट को कदम-कदम पर अहसास कराया जाएगा कि बीजेपी राष्ट्रीय स्तर की बड़ी पार्टी है.

रिश्तों में बिगाड़ सामने आ चुका है. फडणवीस ने शिंदे से थोड़ी दूरी बना ली है. यद्यपि फडणवीस ने कैबिनेट की मीटिंग में भाग लिया लेकिन शिंदे के साथ कोल्हापुर दौरे पर नहीं गए. इसके बाद एसटी के अमृत महोत्सव पर भी सीएम के साथ मंच साझा नहीं किया. आपसी चर्चा से इस अनबन का शीघ्र समाधान निकल जाए तो राज्य के हित में अच्छा होगा.