अब फिर वही सहारा आंदोलनों से ही बनी थी कांग्रेस की पहचान

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    देशवासियों के बीच कांग्रेस की पहचान आंदोलनों के कारण ही बनी थी लेकिन आजादी के बाद सत्ता के मद में चूर कांग्रेसजन आंदोलनों को भूल गए जिसका परिणाम सामने है. महात्मा गांधी ने बिहार में नील की खेती कराने वाले अत्याचारी गोरों के खिलाफ आंदोलन किया और खेतों में बंधुआ मजदूरी करने वाले किसानों को न्याय दिलाया था. गरीब से गरीब आदमी के लिए भी नमक जरूरी होता है. जब अंग्रेजी हुकूमत ने नमक पर टैक्स लगा दिया तो बापू ने दांडी मार्च निकाला और नमक सत्याग्रह किया था.

    बारडोली के किसानों के लिए सरदार पटेल ने आंदोलन किया था. रौलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन में लाला लाजपतराय ने लाठियां झेली थीं. इन चोटों की वजह से ही उनका निधन हुआ था. आजादी के पूर्व कांग्रेसजन शराब की दूकानों को बंद कराने के लिए धरना आंदोलन करते थे. महात्मा गांधी ने 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन किया था और देशवासियों को ‘करो या मरो’ का आह्वान किया था. जब कांग्रेस सत्ता में आई तो उसके नेता सुविधाभोगी होते चले गए. वह सारे आंदोलन इतिहास बनकर रह गए जिन्हें करते हुए कांग्रेसियों ने लाठी-गोली खाई थी. आंदोलनों के माध्यम से कांग्रेस जनता से जुड़ती थी लेकिन सत्ता में आने के बाद वह जनता से दूर होती चली गई. सामान्य कार्यकर्ता तो दूर, अपने शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी कांग्रेस हाईकमांड मिलने के लिए समय नहीं देता.

    2014 से मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में है. कितने ही ज्वलंत मुद्दे ऐसे रहे जिन पर कांग्रेस तीव्र आंदोलन कर सकती थी लेकिन वह सक्रियता नहीं दिखा पाई. देर से ही सही, कांग्रेस को होश आया है कि आंदोलन से ही सोई हुई सरकार को जगाया जा सकता है. देश में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, खाद्य तेलों व अन्य आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं के दाम में हो रही बेतहाशा वृद्धि, पेगासस जासूसी कांड तथा कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस देशव्यापी आंदोलन छेड़ने जा रही है. इसके लिए वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को आंदोलन समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. कांग्रेस, शिवसेना, राकां, द्रमुक, राजद, लेफ्ट पार्टियों सहित 19 विपक्षी दल 20 से 30 सितंबर तक राष्ट्रीय आंदोलन करेंगे.