महाराष्ट्र में बढ़ाएं कदम KCR की ललकार, अबकी बार किसान सरकार

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    तेलंगाना के मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव की 2024 के आम चुनाव को लेकर राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा इस बात से नजर आती है कि वे महाराष्ट्र में जनसभाएं कर इस राज्य की राजनीति में कदम रख रहे हैं. इसके कुछ माह पूर्व वे बिहार भी गए थे जहां वे अपने पक्ष में नीतीश कुमार का सहयोग लेना चाहते थे. जाहिर है कि चंद्रशेखर राव संयुक्त विपक्ष का नेता बनने की आकांक्षा रखते हैं. इसी तरह की सोच तो केजरीवाल और ममता बनर्जी की भी है लेकिन सिर्फ हवाई किले बनाने से कुछ नहीं होता. जहां तक केसीआर की बात है उन्होंने राष्ट्रस्तर की राजनीति में उतरने का लक्ष्य रखते हुए अपनी मूल पार्टी टीआरएस का नाम बदलकर बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) कर लिया है.

    केसीआर ने तेलंगाना में किसानों की भलाई के लिए रैयत बंधु योजना शुरू की है. शायद तभी उन्हें भान हुआ होगा कि किसानों के मुद्दे पर राजनीति करके वह आगे बढ़ सकते हैं. पहले भी राजनेताओं ने किसानों का नेतृत्व किया था. महात्मा गांधी ने चम्पारण में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था. बारडोली में सरदार पटेल के नेतृत्व में कृषक आंदोलन हुआ था. चौधरी चरणसिंह किसान नेता माने जाते थे. नागपुर के 1959 के कांग्रेस अधिवेशन में उनकी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से तीखी बहस हुई थी. नेहरू रूस के समान सामूहिक खेती के पक्ष में थे जबकि चरणसिंह ने सहकारी खेती के पक्ष में अपनी राय मजबूती से रखी थी. चौधरी देवीलाल भी किसान नेता रहते हुए उपप्रधानमंत्री बने थे. के.

    चंद्रशेखर राव ने नांदेड़ की सभा में ‘अबकी बार किसान सरकार’ का नारा दिया. महाराष्ट्र में बड़ी तादाद में किसान आत्महत्या पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 75 वर्षों में किसी भी सरकार ने किसानों के हित में कुछ नहीं किया. कई विधायक-सांसद बने लेकिन किसानों के लिए आगे नहीं आए. इसलिए अब किसानों को राजनीति में आना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि किसानों उठो, विधायक-सांसद बनो. जब तक किसानों की सरकार नहीं आएगी, आपकी बात कोई नहीं सुनेगा.

    केसीआर को समझना चाहिए कि मराठवाड़ा और विदर्भ के जो किसान डेढ़-दो लाख के कर्ज के बोझ से घबराकर आत्महत्या कर लेते हैं वे चुनाव लड़ने के लिए लाखों-करोड़ों की मोटी रकम कहां से लाएंगे? हैसियतदार नेताओं की बात अलग है जो खुद को किसान बताते हैं. उनके पास बड़ी उपजाऊ खेती और फार्म हाउस हैं तथा वे बड़ी लागत से यांत्रिक खेती करवाते हैं. सामान्य गरीब किसान को गुजर-बसर करना मुश्किल है. वह कर्ज में पैदा होता और कर्ज में ही मरता है. वह चुनाव कहां से लड़ेगा? इतने पर भी कहना होगा कि ऐसे नेता चुने जाने चाहिए जो ईमानदारी से किसानों के हित की बात सोचते हों और उनके लिए कुछ अच्छा करना चाहते हों.