हाई कोर्ट की नसीहत के मायने, कर्म और धर्म में संतुलन जरूरी

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लखनऊ हाई कोर्ट (Lucknow High Court) ने उन वकीलों को जो नसीहत दी कि वे हर जुमे को जो नमाज पढ़ने के लिए न्यायालय की कार्यवाही से छुट्टी पाने का काम करते हैं, वह नितांत अनुचित है. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि वकीलों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कर्म ही पूजा है. अदालत ने भले ही वकीलों के संदर्भ में यह टिप्पणी की हो किंतु यह सार्वकालिक और सार्वभौमिक ढंग से लागू होती है. कोर्ट ने एमिकस क्यूरी प्रदान करने का भी निर्देश दिया ताकि न्यायिक प्रक्रिया अबाध ढंग से चलती रहे.

तात्पर्य यही कि अगर आप कोई काम कर रहे हैं तो आप पूजा ही करते हैं. अगर आप किसी कारण से उससे जी चुराते हैं तो आप अपने काम का ठीक ढंग से निर्वहन नहीं कर रहे. अंग्रेजी में भी एक उद्धरण है कि ‘वर्क इज वरशिप’, धर्म के नाम पर अपने दायित्वों को निभाने में कोताही बरतना भी अधर्म ही है. भगवान कृष्ण भगवदीता में कहते हैं कि हर मनुष्य अपने कर्मों का फल प्राप्त करता है, वे चाहे अच्छे हों या बुरे मनुष्य जन्म से ही कर्म के बंधन में बंधा होता है. वह चाहकर भी उनसे मुक्त नहीं हो सकता. वहीं धर्म की अवधारणा पर गौर करें तो धर्म एक जरिया है जो सभी लोगों को एकजूट करता है.

क्या सिर्फ भगवान की भक्ति करना ही धर्म है? बिल्कुल नहीं, सिर्फ भगवान की पूजा और भक्ति ही नहीं बल्कि बेसहारा की मदद करना भी धर्म है. व्यक्ति भगवान के मंदिर में जाता है. वहां सर झुकाता है. भगवान को भक्ति भाव से फल, फूल, जल अर्पित करता है. वहीं इन सभी साधनों को वह किसी जरूरतमंद को देकर भी धर्म का काम कर सकता है. आप किसी को सुख दे रहे हैं, किसी का पेट भर रहे हैं, वह भी धर्म ही है. इंसान का सबसे बड़ा धर्म है इंसानियत, मोटे तौर पर धर्म का अर्थ है; किसी का भी बुरा न करना, किसी के लिए मन में हीन भावना पैदा न होने देना.

कुल मिलाकर कर्म जो आपके प्रारब्ध में लिखे हैं और धर्म, जो आप रोजमर्रा के जीवन में अपने आराध्य या प्रिय व्यक्ति के लिए समर्पित भाव से आचरण करते हैं, उनमें उचित समन्वय और संतुलन का होना बहुत जरूरी है; तभी आप एकल और सामाजिक दायित्व का न केवल भलीभांति निवर्हन कर पाएंगे बल्कि समाज का एक बेहद उपयोगी घटक सिद्ध हो पाएंगे.

क्या सिर्फ भगवान की भक्ति करना ही धर्म है? बिल्कुल नहीं, सिर्फ भगवान की पूजा और भक्ति ही नहीं बल्कि बेसहारा की मदद करना भी धर्म है. आप किसी को सुख दे रहे हैं, किसी का पेट भर रहे हैं वह भी धर्म ही है. इंसान का सबसे बड़ा धर्म है इंसानियत. मोटे तौर पर धर्म का अर्थ है किसी का भी बरा न करना, किसी के लिए मन में हीन भावना पैदा न होने देना.