अन्ना हजारे के खिलाफ उनके ही गांव में आंदोलन की नौबत

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    समाजसेवी अन्ना हजारे को स्वप्न में भी कल्पना नहीं रही होगी कि उनके गांव रालेगण सिद्धि में उनके ही खिलाफ आंदोलन होने की नौबत आएगी. अन्ना ने अपने इस गांव को मॉडल विलेज बनाया जहां लोग नशा-पानी नहीं करते और नैतिक सिद्धांतों का पालन करते हैं. अन्ना ने अपनी सैन्य सेवा की पेंशन व अन्य लाभ गांव की भलाई व उत्थान के लिए समर्पित कर दिए. स्वयं का निवास भी नहीं बनाया और यादव बाबा मंदिर में रहते हैं. जनलोकपाल बिल की मांग और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़कर अन्ना समूचे देश में प्रसिद्ध हो गए थे. वह भी समय था जब लोग ‘मैं भी अन्ना’ लिखी टोपी पहनकर गर्व महसूस करते थे.

    जब अन्ना अनशन पर बैठते थे तो उन्हें मनाने की चिंता सरकार को हो जाती थी. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 2014 में मोदी सरकार आने के पीछे अन्ना हजारे के आंदोलन का काफी हद तक योगदान था.

    अन्ना और बाबा रामदेव के आंदोलनों से कांग्रेस विरोधी माहौल बन गया था. जनता में उम्मीद जाग उठी थी कि घपले-घोटाले खत्म होकर एक नई बदलाव वाली सरकार आएगी. अब अन्ना हजारे के गांव के सामाजिक कार्यकर्ता सोमनाथ काशिद ने चेतावनी देते हुए कहा कि देश में महंगाई अपनी पराकाष्ठा पर है किंतु अन्ना सोए हुए हैं. अत: उन्हें नींद से उठाने के लिए आंदोलन किया जाएगा.

    यह आंदोलन 1 जून से शुरू होगा. इसे अन्ना के लिए ‘घर की चुनौती’ कहा जा सकता है. यदि वे महंगाई के खिलाफ आंदोलन करते हैं तो यह मोदी सरकार से टकराव माना जाएगा. अन्ना का सरोकार सिर्फ जनलोकपाल बिल से रहा है. वे इस उम्र में नए मुद्दे को लेकर क्यों आंदोलन करेंगे और वह भी दूसरों के कहने से! अन्ना भी जानते हैं कि कितने ही नेताओं ने अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए उनका इस्तेमाल किया. केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी, वीके सिंह जैसे नेता अन्ना आंदोलन की ही उपज रहे हैं