पहले देश को प्राथमिकता, दुनिया भर को अनाज पूर्ति से यू-टर्न

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    रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विश्व में आए खाद्यान्न संकट को देखते हुए विश्व बाजार में गेहूं के भाव तेजी पर चले गए. बढ़ती वैश्विक मांग की वजह से भारत से गेहूं का निर्यात 2021-22 में 70,000 टन तक चला गया. लगभग 2 अरब डॉलर्स का कारोबार हुआ. इसमें से आधा गेहूं का निर्यात बांग्लादेश को किया गया. इस दौरान देश में गेहूं महंगा होता चला गया. इस आर्थिक वर्ष में 1 करोड़ टन गेहूं निर्यात का भारत का लक्ष्य था. इसके लिए विभिन्न देशों को प्रतिनिधि मंडल भेजे जानेवाले थे. 

    ईंधन व अनाज की दरवृद्धि की वजह से अप्रैल में महंगाई 8 वर्षों में सर्वाधिक हो गई. आखिर प्रधानमंत्री को देश की प्राथमिकता समझ में आई. इसलिए देश में संभावित खाद्यान्न संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने गेहूं निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. गेहूं संकट की गंभीरता को देखते हुए सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा वरना निर्यात करने की दरियादिली देश को बहुत महंगी पड़ती. सरकार की नीतियों में समन्वय की कमी इसी बात से दिखाई देती है कि गेहूं की कमी के बावजूद 1 से 1.25 करोड़ टन गेहूं निर्यात करने के लिए गुरुवार को कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ने टास्क फोर्स का गठन किया था. 

    इस दौरान सरकार ने फैसला बदलकर गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत प्रतिवर्ष 260 लाख टन गेहूं की जरूरत देश में होती है. अगले 6 महीनों में प्रति माह 5 किलो मुफ्त खाद्यान्न देने के लिए 109.28 लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया है. बफर स्टाक के लिहाज से केंद्रीय पूल में 75 लाख टन गेहूं होना चाहिए. इन तीनों आंकड़ों को जोड़ने पर पता चलता है कि देश को इस वर्ष की अपनी जरूरतों के लिए 445 लाख टन गेहूं की जरूरत हैं. इसके विपरीत पुराना स्टॉक व नए खरीद लक्ष्य को मिलाकर सरकार के पास 385 लाख टन से कम गेहूं रह जाएगा. इन बातों को देखते हुए दुनिया भर को अनाज पूर्ति के ऐलान से सरकार को पीछे हटना पड़ा.