बाड़ ही खेत को खाने लगी 21 करोड़ रुपए का भविष्य निधि घोटाला

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    भ्रष्टाचारियों का लोभ इतना बढ़ जाता है कि वे गरीब मजदूरों की पसीने की कमाई व जमा-पूंजी हड़पने से भी नहीं चूकते. हर श्रमजीवी को पूरा भरोसा होता है कि उसकी भविष्य निधि की रकम सरकारी हाथों में सुरक्षित रहेगी तथा प्रॉविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन सेवानिवृत्ति के समय उसे यह रकम ब्याज सहित दे देगा. रिटायर होने के बाद कर्मचारी व उसके परिवार के लिए पीएफ की रकम एक बड़ा सहारा होती है. अपने सेवाकाल में इस बचत को लेकर कर्मचारी निश्चिंत रहता है और मानता है कि बच्चों के शादी-ब्याह, मकान बनवाने या आकस्मिक जरूरतों के लिए वह पीएफ में से कुछ एडवांस राशि निकाल भी सकता है.

    कितने ही लोग अत्यंत आवश्यक होने पर ही भविष्य निधि से कुछ धन निकालते हैं अन्यथा इसे अपने बुढ़ापे के लिए जरूरी मानकर छूते तक नहीं. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के पास यह वेतनभोगियों की अमानत होती है लेकिन अमानत में खयानत करने वाले भ्रष्टाचारी गिद्धों की नजर इस पर भी पड़ गई. मुंबई के कांदिवली स्थित कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के कार्यालय में कर्मचारियों ने साठगांठ करके 21 करोड़ रुपए के पीएफ फंड घोटाले को अंजाम दिया. इस घोटाले का मास्टरमाइंड चंदनकुमार सिन्हा नामक क्लर्क है जिसने प्रवासी मजदूरों के 817 बैंक अकाउंट का इस्तेमाल कर 21.5 करोड़ रुपए अपने खाते में जमा कर लिए. सिन्हा के साथी अभिजीत ओंकार ने उसे बैंक अकाउंट मैनेज करने में मदद की. पीएफ ऑफिस के अनेक अधिकारी लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम कर रहे थे.

    उन्होंने अपना पासवर्ड सिन्हा को दे रखा था जिसका उसने गलत इस्तेमाल किया, साथ ही सिस्टम की कमजोरी का लाभ भी उठाया. जिन खातों से पैसे निकाले गए, उनकी 90 फीसदी रकम किसी अन्य अकाउंट में ट्रांसफर कर दी गई. जिन गरीब प्रवासी मजदूरों ने कोरोना काल में इतनी आपदाएं झेलीं, रोजी-रोटी छिन जाने से पैदल अपने गांव लौटने को मजबूर हुए, उनकी रकम पर हाथ साफ करना कितना अमानवीय है!  इस मामले में सिन्हा व 4 अन्य आरोपी निलंबित किए गए हैं. आंतरिक जांच के बाद मामला सीबीआई को सौंपा जाएगा.